Tuesday, 13 May 2014

ग़ज़ल-12 

जाने कैसे हालात बनते जा रहे।
वो नज़दीक से दूर सरकते जा रहे।।

यूँ तो बात करते हैं वो रोज़ ही।
पर अक्सर खामोश रहते जा रहे।।

खुदा न करे टूटे ये रिश्ता हमारा।
हालात पर ऐसे ही बनते जा रहे।।

परेशाँ हम तो वो भी कम नहीं दिखते। 
आसार लेकिन और उलझते जा रहे।।

"उस्ताद" तुम ही कहो हम क्या करें।
ख्वाब में भी वो बिछुड़ते जा रहे।। 

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