Saturday, 31 May 2014

पहाड़ी हास्य व्यंग


















१)      संबंधन के पुचछा ,आजकलोक हाल
         गली-गली में देखो ,बिकण लागरो प्यार।

२)     डॉक्टर,इंजीनियर बडून में ,ईज़ बाबू छन हड़बड़ान
         बाद में चेल-चली नी पुछड़इ,यस  छन ननकरनोक हाल।

३)     डबल जस ले दूगण है जाओ ,ईज बाबू यस दिडी ज्ञान
         औरि जे हाड कापड़ी यनर ,दीण में भल-भल जे संस्कार।

४ )    मेश आ मेश दिखड़ी ,यां बाटी वां ,वां बटी यां
         तू मके खाले मैं तुके खुअल ,यस छन हालात।



















५ )    सास ब्वारिन में रोज हुडे ,झाड़ कुटी छलझाड़
         आदिम लिजी अडकसी हेगे ,मारोल कसि डाड।

६)      चुल में खांड वाल बुड -बुडी ,है गईं ओरि एडवांस
         ब्या -पार्टीन में मलमल हेबर ,चटपट खाड़ी भात।

७)     नानतिन ले कसि पछिल रौल ,ऊ तो काटनी सबनेक कान
         दूध -भात पट्ट छू यनेर लिजी ,चाउमीन बर्गर लिजी चूड़े लार।

८)      संस्कार सब गाड़ बग गई ,छिनार जे बड़ रई  रानी
          आम आदिम किले दोष दिछा,जर-जोरू लिजी लड़नी सन्यासी।






















९)      फैशन में कसर नी रैण चै ,किटी लिजी हर बखत तैयार
         खसम लिजी खांड बडून  में ,शेड़िन के उड़े ओरि डाड। 

Thursday, 29 May 2014

साईं तेरी कृपा

साईं तेरी कृपा की क्या चर्चा करुँ
हर साँस पे कैसे मैं रचना रचूँ।                            

हर तरफ तेरा जलवा है छाया हुआ
मैं भला फिर कृपा  से क्यों वंचित रहूँ।

रोशनी का तलबगार ये दिल है मेरा
पाक कदमों में तेरे मैं सज़दा करूँ।

नाम तेरा मैं हूँ जबसे लेने लगा
खुशहाल हर  हाल फिरता रहूँ।

आँख में प्यार की तेरे गंगा बहे
फिर भला आचमन मैं क्यों न करूँ। 

Wednesday, 28 May 2014

नील गगन के नीचे 
















अनंत विस्तारमयी,नील गगन के नीचे
जाने कितने वर्षों बाद,लेटा आँखें मीचे।                          

चाँद, सितारे, बादल के फाहे जाने देखो कितने
रूप बदलते एक-एक पल,में लगते बड़े सलोने।

मंद-मंद शीतल समीर,थपकी दे मुझको वैसे
अपने आँचल ले सुलाती,माँ थी मुझको जैसे।

स्वतः आँख खुल गयी,भोर किरण से पहले
पुलकित मन ने मेरे देखे,सपने नए नवेले। 

Tuesday, 27 May 2014

विदेशों में बी.जी.एम. (भगवद्गीता मैनेजमेंट ) की धूम 



चीनी चिन्तक ,विचारक सुनजू क़ी "आर्ट ऑफ  वॉर" पुस्तक कुछ समय पूर्व तक देश-विदेश में मैनेजमेंट छात्रों की पसंदीदा पुस्तक थीं। लेकिन इधर स्थितियां तेज़ी से बदली हैं ओर पूर्व में विश्व -जगदगुरु  रह  चुके भारत का  जादू फिर से सिर चढ़ कर बोलने  लगा  है। भारतीय दर्शन को अपने 18 अध्यायों में समेटे योगयोगेश्वर श्रीं क़ृष्ण के मधुर कंठों से निकली "भगवद्गीता "अब बिज़नेस स्कूल ओर कॉर्पोरेट जगत में विश्व भर में तेज़ी से लोकप्रिय होतीं जा रहीं है।
अमेरिका में केलॉग के मैनेजरों  को लीडरशिप सिखा रहे नये दौर के गुरु दीपक चोपड़ा, जनरल इलेक्ट्रिक में कारोबारी सलाहकार रामचरण की क्लास या लीमेन ब्रदर्स इन्क में स्वामी पार्थसारथी के स्टाफ को दिए गये प्रवचन इन सब में घूम - फिर के जो एक मूळ तत्व सबको आकर्षित कर रहा है वह है भारतीय ज्ञान चिंतन का अनुठा कालातीत दर्शन जो भगवद्गीता में सार रूप में समाहित है।
दरअसल,ये भारतीय गुरु विदेशी प्रबंधकों को भगवद्गीत्ता के कर्म को ही समझा रहे हैं और वहां इस नए रुझान को "कर्मा कैपिटलिज्म"यानि कर्म पूँजीवाद कहा जाने लगा है। श्री श्री रविशंकर,स्वामी पार्थसारथी आध्यात्मिक गुरु तो एक अर्से से हैं लेकिन इधर सी.के.प्रह्लाद ,रामचरण और विजय गोविन्द राजन भी कारोबारी गुरू के रूप में बहुत चर्चा में हैं।
सुन जू की किताब लीडर के बाह्य व्यक्तित्व को ही उभारती रही है और अभी तक विश्व में इस बाह्य व्यक्तित्व का विकास करना ही प्रमुख उद्देश्य माना जाता रहा था। इसके ही माध्यम से ही व्यवसाय में निरन्तर उनत्ति की कल्पना की जाती रही थी।  लेकिन भारतीय दर्शन आतंरिक व्यक्तित्व को निखारने पर सदा से जोर देता रहा है। उसका मानना है की "मन चंगा तो कठौती में गंगा"य़ानि कि आतंरिक व्यक्तित्व को सुधारने से बाह्य व्यक्तित्व,स्थितियां,वातावरण आदि सभी का कुशल प्रबंधन अत्यंत सरलता पूर्वक किया जा सकता है।
आज से हज़ारों वर्ष पूर्व अपने शिष्य अर्जुन को निमित्त बना कर सारे विश्व को दी गयी शिक्षा के रूप में संग्रहित गीता, अंतर्मन के अबूझ रहस्यों की परत दर परत खोलकर बाह्य व्यक्तित्व को न केवल विराट बनाती है अपितु सभी प्रकार कीपरिस्थितियों में अनोखी सामंजस्य कला को विकसित करने में भी अत्यंत सहायक सिद्ध होती है।
"कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन  … "(२ /४७)जैसे जगप्रसिद्द उद्-घोष द्वारा एक ओर जहाँ भगवद्गीता "तेरा कर्म मात्र में अधिकार है,फल में नहीं"कहकर कर्मवाद की पोषक है तो वहीँ उस कर्म के कारण रूप प्राप्त फल के प्रति संलिप्तता या मोह को नष्ट करने की शिक्षा देती है। वस्तुतः कर्म का दायरा जितना व्यापक और ऊर्जित  होता है उतना ही उसका मोह के दलदल से निकालना कठिन होता जाता है। कर्तापन के कारण "मैं" का विस्तार होता है जिससे व्यक्ति अपने ही विचारों,क्रियाओं को एकमात्र नियंत्रक,सत्य व् पूर्ण मानने लगता है। परिणामस्वरूप भौतिक सफलताओं के ऊँचे शिखरों पर चढ़ने के बावजूद भी वह आतंरिक रूप से अपने को बेचैन,असंतुष्ट,असफल महसूस करता है।




भगवद्गीता अकर्मण्य बनाने से भी रोकती है और किसी भी प्रकार की अति से बचने की शिक्षा भी देती है। "युक्ताहार विहारस्य युक्त चेष्टस्य कर्मसु  … "(६/१७ )पंक्तियों के माध्यम से वह यथायोग्य आहार-विहार,कर्मों में यथायोग्य प्रयत्नशील प्रवर्ति आदि के द्वारा समग्र जीवन में साम्यता,संयोजन और समता उपजने की महत्वपूर्ण शिक्षा देती है।
आज के दौर में सभी कुछ इतनी तीव्रता से बदल रहा है कि अपने अस्तित्व को बचाये रखना,उत्तरोत्तर प्रगति की और बढ़ते जाना सचमुच ही छूरे की नोक पर चलने जैसा है। गलाकाट प्रतिस्पर्धा,बाजारवाद पृथ्वी के सामने निरंतर नई चुनौतियां पेश कर रहा है। ऐसे में मैनेजमेंट स्कूल और कॉर्पोरेट जगत "कूल" रहने की सलाह देते हैं। लेकिन ये कूल तो भीतर से आता है। यानि की मन के शांत रहने से और यह तभी संभव हो सकता है जब हम बिना राग द्वेष के सतत कर्म करते रहें।"सर्वभूतहितेरताः" (५/२५)-सम्पूर्ण प्राणियों के हित में कर्मरत रहें। भगवद्गीता का दर्शन अमेरिका जैसे विकसित राष्ट्र की "कैपिटल"पर असर बेवजह ही नहीं डाल रहा है।        

पंचमुखी हनुमान की जयजयकार

पंचमुखी हनुमान की जयजयकार 




हनुमान, हयग्रीव,गरुण, नरसिंह, वराह बना पंचरूप विशिष्ट सा
भक्त रक्षा प्रणबद्ध हो,सदा तत्पर खड़े तुम,बन प्रिय इष्टरूप सा।

छिति, जल,पावक, गगन, समीर सारा तेज़ पंचभूत तत्त्व का
साध लिया सार, तभी तो पाते आपमें हम,रूप ईश्वरत्व का।

अद्भुत तेज़- बल सम्पन्न, फैलाते सदा तुम राम यश गाथा
विनत भाव सब एक स्वर, जयकार कर झुकाते तुम्हें माथा।

सिन्दूर, लंगोट और लड्डू तम्हें भाता बड़ा मोतीचूर का
भक्त वही तुम्हें प्यारा,जो पुकारता नाम सदा श्री राम का।

अजर,अमर स्वरुप जो तुम्हारा सदा है करुणानिधान का 
दर्शन तुम्हारे वही पाता, हाथ जोड़े जो श्रद्धा विश्वास का। 


Sunday, 25 May 2014

आधुनिक हॉबी (लघुकथा)






मैं उन सज्जन के घर पहुंचा तो देखा बड़ी सी शीशे की अलमारी में एक से बढ़कर एक पहुंचे हुए लेखकों की सुन्दर ढंग से सुसज्जित कृतियाँ उन सज्जन की साहित्यिक अभिरूचि को इंगित कर रही हैं। मुझे ईर्ष्या हो रही थी कि यह सज्जन तो अपने व्यस्ततम् समय में से कुछ समय पुस्तकों को देते हैं जबकि मैं अपने ही कामों का रोना लिए बैठा रहता हूँ। खैर कोई बात नहीं आज तो मौका मिल रहा है उनके नहा-धो कर आने तक जरा इन विशिष्ट पुस्तकों पर हाथ फेर कर ही संतुष्ट हो लूँ। लेकिन आश्चर्य मैंने पुस्तकों को निकाला तो उनमें किसी के फिंगरप्रिंट मौजूद नहीं थे। 

Friday, 23 May 2014

लघु-कथा :5, 6
















चरित्र प्रमाण पत्र :

लम्बा कद, उभरा सीना। आँखों में क्रूर हिंसक बिलौटे की छाप जो पीने की आदत से लाल रंग में रंग जाने से और भी मुखर हो उठी थीं। गोल भरा चेहरा और खींची हुई गुलेल की तरह घनी काली मूंछे। साथ ही साथ हर सेकंड का  टेंटुआ मसलती हुई तेज़ धार वाली जुबान की अंगुलियों के कारण उससे अब हर पान वाला, साइकिल वाला, रिक्शा वाला  …  काँपने लगा था। भला काँपे भी क्यों न। सिर्फ यूनिफार्म ही तो नहीं थी वरना ईश्वर प्रदत्त मुहर लगा चरित्र प्रमाण पत्र तो था ही, पुलिस वाला होने का।



















 गिरगिट :

वो किसी को समझा रहा था कि कोई भी काम छोटा नहीं होता है। आदमी अपने प्रयत्नों से ही तो गागर में सागर भर पाता है और इसी तरह की हज़ार बातें बता वो मोटर में बैठ ५ सितारा होटल गया जहाँ उसे एक ऑफिसियल कॉन्फ्रेंस में भाग लेना था। वो अभी कॉन्फ्रेंस रूम में जाकर बैठा ही था कि ४ सीट छोड़ एक बॆरा ड्रिन्क सर्व करता दिखा। बॆरा उसके छोटे भाई का दोस्त था। कहीं उसने पहचान लिया , हेलो करा तो, उसकी तो सारी इज़्ज़त   …  वो चुपचाप पेपर से अपना चेहरा ढक, पीठ बैरे की ओर करके उकड़ूँ बैठा रहा।

श्री राम चरण का ले आधार 







पूर्णिमा का चाँद खिला आकाश
दे रहा मुझे आमंत्रण चुपचाप
अंतर्मन का विस्तारमयी वितान
संवार लो तुम भी आज
शांत, श्वेत, सहज-सरल ज्योत्सना
उतार लो अपने हृदयाकाश
फिर उतर गहरे दूर तक
कर लो तुम अप्रतिम नौका विहार
देखो बस देखो और महसूस करो
अब कैसा दिखता है यह संसार
हे न अज़ब, अनूठा भय-मुक्त
यह सारा प्रकृति का भ्रू-विलास
आओ इसको नैन अंजुरी से पीकर
ऋषि अगस्त्य से हो जायें गंभीर
साधनारत कंही किसी कोने में अन्जान
एकमात्र श्री राम चरण का ले आधार। 

नाम मुझे दिलवाएगा 





















साईं वो समय कब आएगा
जब माया का डर मिट जाएगा
चारों तरफ़ बस तेरा ही नूर
मुझको तू दिखलायेगा
मन हो जाएगा निर्मल
ह्रदय "नलिन" मुस्काएगा
ये जीवन जो कठिन बड़ा है
सहज-सरल हो जाएगा
नाम को लेते हर छन तेरे
बुरा वक्त कट जाएगा
जब कभी बुलाऊंगा मैं तुझको
तू दौड़ा -दौड़ा आ जायेगा
काम करेगा खुद तू सारे
 नाम मुझे दिलवाएगा। 

Thursday, 22 May 2014

श्याम-श्याम 






श्याम-श्याम जैसे पुकारता हूँ मैं अनवरत
कभी तुम भी राधा-राधा कह मेरा नाम लो।

हर जगह, हर रूप में जैसे पाता हूँ मैं तुम्हें
तुम भी तो कभी दीदार को मेरे बेचैन हो।

ये दुनिया तुम्हारी बड़ी ज़ालिम है कसम से
कभी बैकुण्ठ छोड़ हकीकत में आ देख लो।

दूर-दूर जब जब तलक तुम रहोगे रूठ कर
सत्याग्रह करूंगा मैं भी तब तलक जान लो। 

Wednesday, 21 May 2014

अभी है वक्त  .... 


जागने से  इन्सान तब क्या होगा
चिड़ियाँ चुग लेंगी जब खेत तेरा।
अभी है वक्त कुछ थोड़ा बचा हुआ
माँ प्रकृति की लाज़ रख ले जरा।।
जागने से इंसान क्या होगा  ....

हरे-भरे पेड़ बनते  हैं ताकत तेरी
अपनी ताकत तो जरा पहचान ले।
इनसे मिलती छाया, भोजन,औषधि
यही सोच इन्हें कटने से बचा ले।।
जागने से इंसान क्या होगा  ....

बहती नदियां भरती खुशनुमा रंग ऐसे
सन्यासी, यात्री, रोगी यहाँ खुश रहते।
पानी की हर बूँद सदा अमृत समाये
यही सोच इन्हें साफ़-सुथरा बना ले।।
जागने से इंसान क्या होगा  ....

धुँआ,कोयला,राख सारे के सारे
धड़-धड़ चलती मशीनों की आवाजें।
धरती माँ के घावों को और बढ़ाते
यही सोच इन्हें तू सीमित कर ले।।
जागने से इंसान क्या होगा  .... 

Tuesday, 20 May 2014

ग़ज़ल-15

















शक-शुबह की राजनीति अब रहने दीजिये।
उम्मीद-ए-किरण,आफ़ताब* बनने दीजिये।।
*सूरज

अंधेरे को कोसने का दस्तूर अब ठीक नहीं। 
बस दीपक जरा अखन्ड विश्वास का जला दीजिये।। 

हाथ में हाथ ले अब बढ़ चलें हम सभी। 
माहौल अब ऐसा भी बनने दीजिये।। 

खुशगवार होने का जब बन रहा सिलसिला।  
सपने कुछ नये हर दिशा महकने दीजिये।। 

दायरे संकीर्ण स्वार्थ के अब तो तोडिये जरा। 
अच्छा-भला कुछ दिमाग को"उस्ताद" सोचने दीजिये।। 

हनुमान तुम  …

























हनुमान तुम राम की  हो कीर्ति गाथा।
जग में तभी सब टेकते तुम्हें माथा।।

पवनपुत्र तुम बल-बुद्धि,विवेक दाता।
तुमसे जोड़ना चाहे, हर कोई नाता।।

बगैर बताये बल तुम्हें कहाँ याद आता।
हर साँस तो बस राम ही राम आता।।

नम्र,विनीत,सेवा को तत्पर भाव तुम्हारा।
नाम तुम्हारा जग के सारे क्लेश मिटाता।।

श्री राम दर्शन की यदि है कोई चाहत संजोता।
चरण पकड़ ले हनुमान के तो साक्षात् पाता।।

Monday, 19 May 2014

ये दर्द अभी .....,




















ये दर्द अभी हवा हो जाता है
उनके न आने तक ही ये हवा करता है
गोया उनके सामने मुझे झूठा
बनाना चाहता हो जैसे।
हम लाख कसमें खा लें
मगर वो मानें भी भला कैसे
ये गुस्ताख़ दिल ही ऐसा है
कमबख्त रोकने पर भी नहीं रुकता
आंखिर मचल ही जाता है
सुन दूर से ही आहट उनकी
ये दर्द अभी हवा हो जाता है।

पहले न समझाई हो
ये बात,ऐसा भी नहीं
लेकिन समझाने पर तो ये
और अधिक उखड़ जाता है।
तब उनके न आने पर भी
आहट सुना बेमतलब की
दर्द को डरा-धमका जाता है
जिस को सुन, सच समझ
ये दर्द अभी हवा हो जाता है।


Sunday, 18 May 2014

लघु - कथा 3, 4

दुःख -सुख :

वे दोनों सगे भाई थे। दोनों को तार से पिताजी के सख्त बीमार होने की ख़बर मिली थी। बड़े भाई तो अपने पूरे परिवार के साथ आये थे लेकिन छोटा भाई अकेला आया था। पिताजी की उम्र थी भी ऐसी की कभी भी जिन्दगी का "पारा "हाथ से फिसल सकता था। भाग्यवशात् पिताजी स्वस्थ हो गए। वह भाई जो पूरा परिवार लाया था दुखी था कि नोट तो इतने लगाये पर काम कुछ भी न बना। अब फिर आना पड़ेगा। छोटा भाई खुश था कि चलो अच्छा हुआ नहीं तो बड़े भैय्या पूरे गाँव में इम्प्रेशन मार लेते।




अंतर :

 कुछ युवा अपने मित्र "सुखेश "के घर उसे साथ लेने के लिए पहुंचे। देखा उसका अपने बड़े भाई से जबरदस्त तू-तड़ाका चल रहा था। बड़े भाई का कँही कोई लिहाज़ नहीं दिख रहा था। ख़ैर समझा- बुझा के मित्र टहलने निकले। पहाड़ी की  नैसर्गिक सुंदरता का आनंद लेते, बीती बात भुलाते सब आगे बढ़ रहे थे। एक जगह काफी ऊंचाई से गिरते झरने को देख युवा अपने को रोक नहीं सके और तौलिये की कमी को नज़रअंदाज़ कर सब नहाने लगे।सुखेश लेकिन इस तरह खुले में सबके सामने नहाने को तैयार नहीं हुआ। सभी मित्र हैरत में थे, उसके साथ में न नहाने पर क्योंकि अभी कुछ देर पहले ही तो सब मित्रों ने उसे नंगा देखा था।


नमो-नमो हे लाल भारती







स्वर्णिम भविष्य ललाट पर,अक्षत-रोली तिलक सजाया।
नमो-नमो हे लाल भारती,यश का तूने  क्या शंख बजाया।।

इतिहास रचा,आशाओं का शतदल केसरी "नलिन"खिलाया।
तमसाच्छादित जीवन में रंग भरने का संकल्प दिलाया।।

जाति,संप्रदाय,दलगत स्वार्थ-बंधन से टूटा देखो नाता।
दसों दिशाओं रथ विकास का,सबको दिखता आता।।

जगद्गुरु जो कभी रहा था प्यारा हिदुस्तान हमारा।
सम्मान वही फिर पायेगा,अखंड विश्वास हमारा।।

कोटि-कोटि स्वर दिग्-दिगंत तक गुंजमान कर डाला।
सबका मंगल,सबका कल्याण बस गूँज रहा एक नारा।। .

विवेक रहे जब नीर-छीर का,विश्वनाथ भी मोद लुटाता
नेतृत्व करे जो श्रेष्ठ सभी का, है "नरेंद्र" वो कहलाता।।

Friday, 16 May 2014

Guru Chandal Yoga





Guru or say Jupiter is the biggest Planet. It is related with knowledge, social-behavior/ bounding, moral values, blessings etc. In all you can say virtuous (satvick) personality is developed under benefic Jupiter and its proper position. Mostly Jupiter gives good results and saves you from any mishappening.
Jupiter combination (placed in one sign) with Rahu or Ketu is called Guru Chandal Yoga. Some authors say that if Guru is aspect by Rahu-Ketu then also you can say Guru Chandal is present. But I don’t agree fully. Actually Guru-Rahu or Guru-Ketu combination is called Guru Chandal Yoga because Rahu- Ketu qualities are just opposite to Guru and Rahu and Ketu are regarded as malignant (Tamsic) planets or worse malefic planets. In my opinion Rahu and Ketu should be taken as pure materialistic Planets (mainly Rahu; Ketu is related to Moksha, 6th sense, flag of dharma etc.) as they give material desires. So joining with Jupiter they are supposed to spoil the good nature of Jupiter. We should also consider that in Indian society from the very beginning Indians are against materialistic approach. Thanks to Kaliyuga, now we are keen to acquire wealth even through improper means. So nowadays this combination cannot be said untouchable but if this kind of other planetary positions are also present then the native can go up to any extent to fulfill his (illegitimate) desires. Persons coming in news due to their scam, corruption charges may have this kind of combination.







Jupiter is the planet of expansion so with Rahu-Ketu the native wants material expansion. Adolf Hitler has this combination in Sagittarius sign in his third house. We can see clearly the over expansion motives of Hitler. Sagittarius is a fiery sign, third house is related with muscle power and because Sagittarius is the own house of Jupiter hence he got victory over his enemies and become famous. On the other hand Nehru had same sign combination in 6th house, so most of his life was spent in 6th house affair – fighting the shrewd enemy. As sixth house represent jail also, he got name and fame by writing ‘Discovery of India’ in jail. Some extra marital affairs with high class people can also be understood by this combination. George Bernard Shaw, famous English philosopher has this combination (Jupiter+Rahu) in philosophical, emotional sign Pisces which helped him in Jupiterian pursuits like authorship.
So this combination can be good but you have to analyze the chart properly. If Jupiter is favorable for the particular chart then this combination can give favorable results in materialistic areas. Watery signs (4,8,12) can give humanitarian, arts and cultural related work. Fiery signs (1,5,9) can give forceful activities. Airy signs (3,7,11) may join you with intellectual pursuits and Earthy signs (2,6,10) will give practical approach with fully conscious for power, prestige and money.
Houses in which this combination is taking place should be taken in account. Degrees are also important because if they are in near degrees than the result will be more effective while far away degrees, though in same house, will make the combination weak. So further, one should check the Bhav-Kundali also to locate where the planets (in house) are in real.
First house combination will be related to native’s overall behavior; 4th and 9th house to parental relationship and childhood surroundings. 2nd, 5th, 11th to finance; 3rd, 10th with working attitude and their outcome; 6th, 7th house are related with life partner and 12th, 8th houses are related with some complicated problems. One native in my case study was with Jupiter+Ketu combination in 8th house in Virgo sign, which gave him typical skin disease. As in Earthy sign he is practical, and because it is in Mercury sign he is a versatile and talented person, though not proper recognized yet. In another case Jupiter+Rahu is placed in 7th house in emotional sign Pisces. Jupiter in the Nakshatra of Ascendant lord – Mercury and Rahu is in Nakshatra of Sun. Person was mentally upset and went under psychic treatment when Rahu Mahadasha and Jupiter Antardasha came in his life.
So one should check all the possibilities in the chart and then the prediction should be made, otherwise science will be blamed for your hasty-decision. One should do charity and prayer for Jupiter and Rahu/Ketu to neutralize the worse effects of Guru-Chandal Yoga.


NOTE: For my blog readers above mentioned article is a brief discussion over                Guru-Chandal Yoga hope it will serve the purpose.

बेचो-बेचो





बेचो-बेचो अब खुद को भी बेचो
ऐसे जग में काम चले न
अब खुद को भी बेचो।

भाई को बेचो, बहन को बेचो
माँ को बेचो, बाप को बेचो
अब संबंधों को भी बेचो।

ईमान को बेचो, शर्म को बेचो
सत्य  को बेचो, प्रेम को बेचो
अब मानवता को भी बेचो।

न्याय को बेचो, देश को बेचो
जिन्दे, मुर्दे सब को बेचो
अब नैतिकता को भी बेचो।

बेचो-बेचो अब खुद को भी बेचो  …

Wednesday, 14 May 2014

साईं ग़ज़ल -48.



साईं तेरे रहमो-करम से बस जीवित हूँ मैं।
वैसे तो भीतर से सच में बड़ा व्यथित हूँ मैं।

ज़िन्दगी गुज़र जाए अगर तेरा नाम लिए बगैर।
ऐसी ज़िन्दगी भला किस काम की चिंतित हूँ मैं।।

बहुत दूर-दूर तक उम्मीदे लौ तो दिखती नहीं।
पर हैरान नहीं, तेरी नेमत से हर्षित हूँ मैं।।

दस्तूर हैं महज ये दोस्त,ये दुश्मन दुनिया के।
ज़िन्दगी तो बस एक तेरे भरोसे जीवित हूँ मैं।

कोलाहल तो है दुनिया में हर तरफ़ "उस्ताद"।
शांत, सहज बस तेरी वज़ह से शोभित हूँ मैं। 

चलो बटोरने चलें


दिल की किताब में मेरी
आमुख लिख दो अपना
बिक जायेगी,हाथों-हाथ
दिल के बाज़ार में।
क्योंकि अब यह बात
हर कान में आ गयी है
कि मैंने तुमसे करा है
लिखने का निवेदन
   "दो-शब्द"
तो बस अब देर है केवल
प्रथम संस्करण की।
अतः देर न करो
चलो बटोरने चलें दौलत
जो मिलेगी हमें छपने पर
प्यार और बस प्यार की।


Tuesday, 13 May 2014

ग़ज़ल-12 

जाने कैसे हालात बनते जा रहे।
वो नज़दीक से दूर सरकते जा रहे।।

यूँ तो बात करते हैं वो रोज़ ही।
पर अक्सर खामोश रहते जा रहे।।

खुदा न करे टूटे ये रिश्ता हमारा।
हालात पर ऐसे ही बनते जा रहे।।

परेशाँ हम तो वो भी कम नहीं दिखते। 
आसार लेकिन और उलझते जा रहे।।

"उस्ताद" तुम ही कहो हम क्या करें।
ख्वाब में भी वो बिछुड़ते जा रहे।। 

Monday, 12 May 2014

ईद के चाँद की तरह



सोचता हूँ इस ईद पर
हामिद की तरह ले आऊं
एक अदद चिमटा
अपनी दादी,याने अपने पिता
अपने सृजनहार की माँ के लिये
अपनी कायनात के लिये।
जिससे न जले उसका हाथ
कभी रोटी पकाते हुए।
क्योंकि रोटी तो जरूरी है
इस दुनिया के तमाम ख़्वाबों में
हकीकत की सच्चाई भरने के लिये।
लेकिन फिर सोचता हूँ
बूढी माँ कहाँ मानेगी
वो तो अपन हाथ जलायेगी ही।
क्योंकि उसके लिये
वो एक सौभाग्य,एक उत्सव है।
जो स्थानांतरित करती है
हवन में दी जाने वाली
प्रत्येक आहुति की तरह
अपनी ऊष्मा को लाडले के लिये।
दरअसल उसकी नाभि से प्रस्फुटित
प्राण संवाहक ऊष्मा
हथेलियों से गुजरती हुई
अँगुलियों तक आकर
गर्म रोटी पर घी सी
पिघल जाती  है
उसकी लज़्ज़त,उसकी मिठास बनकर।
तभी तो उसका लज़ीज़ स्वाद
मेरे खुद के वज़ूद की पहचान
बनाएं रखने के लिये
मेरी जिजीविषा को जागृत कर
आस्था का संबल दे जाता है
रात के गहन अंधकार में भी
ईद के चाँद  की तरह। 

Sunday, 11 May 2014

लघुकथा-1, 2

                         
                                                  डाकू और मंत्री

एक गांव में डाका पड़ा था। खून-खराबा, लूट-पाट  .... ।  विपक्ष ने इस मामले को खूब उछाला । विपक्ष के बड़े नेताजी ने  दावे के साथ कहा कि डाकुओं द्वारा कुछ लडकियों के साथ बलात्कार भी किया गया है। इसलिए उन्होंने मुख्यमंत्री के इस्तीफ़े की माँग भी ऊँचे स्वर में उठाई। मुख्यमंत्री जी इन खबरों से बड़े उखड़े। तुरंत घर में बने तहखाने में डाकुओं के सरदार से मिले। सरदार ने कहा, साहिब अपना भी कुछ ईमान है। अपना गिरोह ऐसी ओछी हरकतें नहिं करता, और फिर बिना आपके हुक्म  ..... ।मुख्यमंत्री जी आश्वश्त हुए और वापस अपने एयर-कंडिशन्ड रूम में आकर कोने में सजीं गुलाब की कली मसलने लगे।

                                                   सांप -सीढ़ी

अड़ोस-पड़ोस के दो-चार बच्चे सांप-सीढ़ी खेल रहे थे। रामु की बारी आई, रामु ने पासा उछाला। गोटी आये हुए नंबरों के हिसाब से आगे बढ़ी। लेकिन ये क्या? गोटी तो सांप के मुंह में। अब तो गोटी को फिर नीचे उतरना पङेगा, किन्तु रामु के चेहरे पर शिकन नहीं आयी, वह चुपचाप जेब से निकाल कर सांप के मुंह में भारत सरकार की सफ़ेद गोटियां डालने लगा। धीरे-धीरे सांप सीढ़ी में बदल गया। 

Saturday, 10 May 2014

माँ 



                               
                                                '' जगत जननी माँ भवानी ''





म से ममता ओर माँ बस यूँ ही नहीं है
दरअसल माँ से बड़ा कोई मजहब नहीं है।

माँ को खुद की तकलीफ, ख़ुशी से सरोकार नहीं है
औलाद की परवरिश से बढ़कर उसे कुछ भी नहीं है।

उसके दिल की धड़कन बन दिल उसका धड़कता है
माँ को फिर सपूत, कपूत में ज़रा भी फ़रक नहीं है।

मौत से क्या वो खुदा से भी भिड़ जातीं है
सृजन में क्योंकि वो खुदा से कमतर नहीं है।

पूरी कायनात की ताकत उसमें समायी हुई है
करुणा, प्रेम की उससे बड़ी मिसाल नहीँ है।

माँ भी जननी और खुदा भी जननी है
माँ में तभी तो स्वार्थ की गुन्जाइश नहीं है।                                                                                                                                                                                      

Friday, 9 May 2014

मनु और श्रद्धा 

अधरों की चट्टाटानों पर बैठ
नैन उदधि के मध्य
काले गेसुओं के घने बादल
जब बरसते हैं तो बस
लगता है "प्रेमी-युगलों" को
कि सृष्टि का अन्त हो गया है
और महाजलप्लावन के बाद
पुनः बीजारोपित करने
सृष्टि उदर में नया अंकुर
बचे हैं केवल वो ही दो
मनु और श्रद्धा। 

डिब्बा -संस्कृति 

अगर आज कोई
बचा-खुचा अभिमन्यू
आतताइयों से घिरा
उन्हें ललकार कर
कह भी रहा हो,"रुको"
अपनी माँ का दूध
पिया है तो दो
मुझे भी हथियार
और फिर देखो
मेरे भी हाथों का कमाल।
तो भला क्यों ?
छोड़ेंगे वो आतताई
भाग्य से मिले
निहत्थे अभिमन्यू को।
वो तो हैं नहीं
फिल्मी गुंडे
जिनको माँ का दूध
निहत्थों पर हाथ
उठाने नहीँ देता।
इनकी नसों में तो
ज़हर उफ़नता है
या फ़िर दूध ही
मगर डिब्बे का। 

Thursday, 8 May 2014

रोना है तो रो लो प्यारे 




















रोना है तो रो लो प्यारे
हँसना है तो हँस लो
लेकिन यूं चिन्तित हो बार-बार
जीवन को न त्रस्त करो।
हँसना तो बहुत अच्छा है
इसमें कंहाँ संदेह भला है
पर रोना भी है नहीं बुरा।
वो तो बस अपने भीतर के
अन्तरतम बसते विकार को
बाहर लाने का एक जरिया है।
जिससे फिर अधरों पर अपने
निर्मल, मृदुल मुस्कान लिये
"नलिन" सहज खिलने लगता है। 

नवधा भक्ति 






















नवधा भक्ति कहउँ तोहि पाहीं …… सोई अतिसय प्रिय भामिनि मोरे।
(अरण्यकाण्ड दोहा 34 से 35)

नवधा भक्क्ति कहता हूँ मैं तुझसे भक्त सुजान।
मन में पैठा ले तू इसको देकर पूरा ध्यान।।

संत चरण में बैठकी कर ले तू दिन-रात।
मेरी कृपा देगी तुझको प्रथम भक्ति सौगात।।

मेरे परम रूप की विविध कथा से कर ले जो तू प्यार।
सहज- सरल भाव से दूॅंगा तुझको दूजी भक्ति अपार।।

श्री गुरु चरण की सेवा में हो जाये जो निहाल।
पायेगा फिर तू  देखना तीसरी भक्ति तत्काल ।।

मेरी गुण राशि जितनी भी हैं अद्धभुत और अपार।
पाये चौथी भक्ति जो गाये तू छोड़ कपट व्यवहार।।

नाम मन्त्र को जप ले जो तू श्रद्धा और विश्वास।
पांचवी भक्ति देखना फिर तू पायेगा हर साँस।।

छठी भक्ति जो चाहे तो है पा सकता अनायास।
यम-नियम से रखना बस मन विरक्ति का वास।।

हर रूप, हर रंग में सर्वत्र मुझको ही जो देख पायेगा।
संत को मुझसे अधिक जान सप्तम भक्ति तू पायेगा ।।

जो मिले, जैसा मिले हर हाल में संन्तोष करना।
आठवीं भक्ति मिले बस निन्दा रस से दूर रहना।।

अखंड विश्वास मुझ पर सदा हर्ष-शोक से मुक्त रहना।
सब संग निश्छल व्यवहार से नवम भक्ति आधार पाना ।।

भक्ति एक भी इनमें से जो कोई जन पा जायेगा।
ब्रह्माण्ड में सारे वो ही मुझे सर्वाधिक भायेगा।।


Wednesday, 7 May 2014

संत सरल चित 

















संत सरल चित जानि सुभाउ सनेहु। बाल विनय सुनी करि कृपा राम चरन रति देहु।।
(बालकाण्ड , दोहा ३ख )

 हे सदगुरु मेरे साईंनाथ सरकार।
आप सदा हैं निर्मल, सहृदय उदार।।

मैं बालक हूँ  मूढ़मति अन्जान।
कर दो कृपा अब तो दयानिधान।।

अन्यथा मैं रोते ही  रह जाउंगा।
राम -चरन की प्रीत कहाँ पाऊँगा।।

ये जीवन भी यूँ ही व्यर्थ चला जायेगा।
तेरे होते भी क्या उद्धार नहीं हो पायेगा।।

Tuesday, 6 May 2014

आओ भईया  .... 





आओ भईया मिल-जुल कर
ज्ञान की जोत जलायें।
पढ़ें-लिखें साक्षर बन कर
देश का मान बढ़ायें।
वक्त भी है और मौका भी
बहती गंगा आज नहायें।



कल पर क्यों काम छोड़ कर
सिर धुनि-धुनि पछ्तायें।
आलस, कमज़ोरी से बच कर
अपना सोया भाग्य जगायें।
मानव को मानव समझें बस
भेदभाव की मेंड़ हटायें।
मन के छल-प्रपंच मिटा कर
आल्हा, कज़री, चैती गायें।
हर हालत में खुश रह कर
अपना घर हम स्वर्ग बनायें। 

ग़ज़ल-11 

ये मेरा जमीर मुझे झूठ कहने नहीँ देता।
अफसोस मगर सच जमाना बोलने नहीं देता।।

कुछ चन्द तालियों, शोहरत और रसूख़ के लिए।
अदब किसी हाल मैं गिरवी रखने नहीं देता।।

वो जो आएं तो रौशन होते हैं सबके चेहरे।
खुदा ऐसा नूर भी सबमें महकने नहीं देता।।

मैं चला था उनके घर तो बहुत सोच के चला था।
सुझायी मगर कुछ भी उनके सामने नहीँ देता।।

बहुत चर्चा सुनी है हमने तुम्हारी हर तरफ़ "उस्ताद"।
हाथ कंगन आरसी भला क्या?जो बूझने नहीं देता।।

आतंकवादी 



















आतंकवादी कोई तोप नहीं हैं 
जो हट या मिट न सकें 
वो तो "इज्जत का कमरा "
जो खुले आसमान के नीचे 
आँगन में बना है 
के उस दरवाज़े से हैं 
जो खुला छोड़ देने से 
पागलपन की बरसात में 
भीगकर , फूल जाता है 
और बड़ा हो जाने से 
बंद नहीं होता 
"बस "
लेकिन दरवाजे का क्या 
इलाज़ नहीं किया जाता ?
बढ़ने दिया जाता है उसे
अपनी इज़्ज़त का फालूदा 
खुद बनाने के लिए
नहीं, कभी नहीं 
दरअसल ऐसी "नाजुक स्थिति "
समझते ही एकदम 
दरवाजा ठोंक-ठांक कर 
इस लायक कर लेते हैं 
कि चिटकनी लग सके 
फिर चाहे "घर वाले"
थोड़ी देर भड़-भड़ से 
परेशान ही क्यों न हों 
और अगर फिर भी 
"दरवाज़ा " अड़ा 
न बंद हुआ तो 
रन्दा चलाते हैं 
बढ़ी लकड़ी को बराबर 
बारीकी से छीलकर 
चिकनाहट लाने के लिए .

Monday, 5 May 2014

खोजी पत्रकारिता 






















पत्रकार जब बहुत देर
फिल्मी हीरो से
फिल्मों पर कम
उनकी कुतिया पर अधिक
प्रश्न दागने लगे
तो झुंझला कर
सुपर-फाइटर हीरो
उनका हर सामानं
उठा-उठा कर
फेंकने लगे
और साथ ही गुर्रा कर बोले
चलिए दफा हो जाइए
नहीं तो जिस कुतिया से
आप मुहब्बत जता रहें हैं
उसी से प्यार भरा
 आलिंगन पाने को भी
जरा तेयार हो जाइए।
पत्रकार ने जब हीरो का
ये अजब बोल्ड रूप देखा
तो घबरा कर, हड़बड़ाते
जाते-जाते यूॅ बोला
देखिये , यूॅ ख़फा  न होइए
हमें आपकी कुतिया से छोड़िये
आपसे जरा , इत्तू भर भी
प्यार का भाव नहीं है
वो तो कहिये पेट है
इसलिए पत्रकारिता पाल लीं है
वर्ना हमें भी यूॅ बेमतलब
कुतिया पर थीसिस लिखने की
कोई भंग नहीं चढ़ी है।
और भगवान झूट न बोलाए
हम तो चाहते थे बस
जानना केवल  इतना
कि क्या डाइवोर्स होगा?
आपका ओर आपकी कुतिया का
क्या आपको जरा भी नहीं
बाकी  रही उम्मीदे - मुहब्बत?
अगर है , मतलब
अपनी जान से ज्यादा
प्यारी है इसकी जान
तो हंड्रेड परसेंट
सुरक्षित फिल्मी फॉर्मूले वाली
अपनी सुपर  हिट फिल्म में
क्यों नहीं रखा
इसका  महत्वपूर्ण रोल
और जबकि दिया है
आपने अपनी  तलाकशुदा बीबी
और अनाथ से बेटे को
क्रमशः हीरोइन और हीरो का
चैलेंजिंग व टैलेंट भरा रोल .

 गॉव -गॉव में हुई रोशनी 


















गॉव -गॉव में हुई रोशनी
पढने-लिखने देखो निकली
बालक - बूढ़ों की ये टोली।
गॉव -गॉव में हुई रोशनी।।

बांह थाम के एक दूजे की
हिम्मत-करके देखो निकली
भारत के लालों की टोळी।
 गॉव -गॉव में हुई रोशनी।।

माथ लगा के सूरज -रोली
भविष्य सजाने , देखो निकली
दादू , तुलसी की ये टोली।
गॉव -गॉव में हुई रोशनी।।

खोल के , अपनी-अपनी झोली
जन्म सुधारने , देखो निकली
भक्त शारदा की ये टोली।
गॉव -गॉव में हुई रोशनी।।


Sunday, 4 May 2014

मुक्त होने के लिये 


















यद्यपि हूँ मैं पातकी,तो भीं छल-प्रपंच से।
हाथ जोड़ हूँ खड़ा, मुक्त होने के लिये।।

पूरी कायनात से विनम्र हो, सद्भाव से।
करता हूँ मैं प्रार्थना, स्नेह -प्यार के लिये।।

दुआ करें,ये आप सभी मेरी ख़ातिर रब से।
 लायक बना ले वो मुझे, अपना होने के लिये।।

वर्ना तो कहाँ बच पाऊँगा, इन हालात में।
सो करना मदद सभी, मेरे जीवन के लिये।।

खुद पर यक़ीं नही, मुझे एक बार से।
अनुनय तभी तो है, आपसे अपने लिये।।

(निज बुधि  बल भरोस मोहिं नाहीं। तातें विनय करउँ सब पाहीं।। -तुलसी रामचरितमानस 1 /8 )

Saturday, 3 May 2014

आंखिरी - भेंट



रात में चुपचाप
जब सो जाते हैं सब 
घोंसले बदलता हूँ 
इच्छा से ?  नहीं
विवश्ता ! मजबूरी से।
क्योंकि हर घोंसले पर
पहुँच जाते हैं
फ़न उठाये सांप
सचमुच जो की
दूध पीते हैं
मेरी आस्तीन के  भीतर।
लेकिन बचूंगा नहीं
दंशों से इनके
यह ज्ञात है मुझे
क्योंकि आजकल इनका
छेत्र इतना व्यापक है
कि एक-दो नहीं
अनगिनत,स्वछन्दता से
देख सकते हैं आप
घोंसले पर मेरे।
सांप को सांप कहुँ
यह सत्य - कटु सत्य - 'नहीं '
यह तो हैं मेरे अपने दोस्त जो
चूसते हैं - "चन्द  सिक्के "
जो कमाता हूँ मैं
तब-तक, जब-तक
मुझे चूस कर,झंझोड कर
मेरी एक -एक बूँद को
पसीने के बहाने से
जो मिली है मुझे
पिपासुओं की तृष्णा
शांत कर सकती है।
फिर - समय देते हैं
मेरे दोस्त मुझे
फलने - फूलने का
और जब देखते हैं
भरा-पूरा फिर से
गडा  देते हैं दंश
तब - तक चूसने को
जब तक मैं,छटपटा कर
नीला पड़कर,बेहोश नहीं होता।
और उसके बाद वही
अनवरत किस्सा
जो चलेगा मेरी
आंखिरी धड़कन तक।
मरा  हाथी सवा लाख का
इतना नहीं तो फिर भी
कुछ तो शायद दे सकूंगा
 मौत के बाद भी इन्हें।
जो प्रथा अब समाप्त हो चुकी है
आदमी -आदमी को खाने की
बता देगी ज़माने को
मेरे मरने के बाद
कि मैं जिन्दा हूं
क्योंकि मेरे दोस्त तब
मेरी लाश को आपस में
बराबर !!!बाँट कर
दुःखी हो खा रहे होंगे
क्योंकि यह मेरी जिंदगी की
आंखिरी - भेंट  होगी उन्हें।




मेरा कमरा मेरा देश





सीढ़ी चढ़ने पर घुमावदार
मेरा कमरा है
जो लम्बाई में बड़ा
पर ऊंचाई में छोटा है
लेकिन बावजूद इसके
कि छत नीची है
सीलिंग फैन ही है
जो कि घूमते हुए
लीलने को तैयार
नज़र आता है
अब तो आदत है
कमरे तक चढ़ना,रुकना
सिर को झुकाना
शरीर को  फोल्ड करना
फ़िर आहिस्ता -आहिस्ता से
हर कदम पर सतर्कता से
पलंग पर पहुँचना
लेटना,मगर हाथों को
एक सीमा तक उठा
सकपका कर,खींच लेना
फिर किसी तरह
बमुश्किल,बत्ती जलाना
जिससे मुझे रहे याद
पंखा भी चला है
और अगर मैं जगा
तो रौशनी दिखा दे
पंखे का चलते रहना
क्योंकि खतरनाक पंखा
जान लेता था,और ली भी
मेरा दोस्त,6 फुटा
अपने को झुका  नहीं पाया
और कट कर मर गया
उसने कहा था,दोस्त
पंखा इतना सिर पर न रखा करो
इसको तुरंत हटा दो
पंखा रखो तो टेबल -फैन
हवा चाहे कम हो थोड़ी
मगर पंख जाली में हों
क्योंकि उससे
सहजता तुम्हें ही होगी
झुकने की आदत भी
समाप्त हो जायेगी
दिल न डरेगा,झिझकेगा
और न हर कदम पर
चौकन्ना हो, माहौल देखेगा
मैंने उसकी बातों को
पहले भी बहुत सुना था
मगर आज उनका अर्थ
आदतन बिछुड़ने पर
समझ में आता है
खैर !अब तो ले आया हूँ
एक अदद टेबल -फैन
जो एक जगह से  चुपचाप
ठंडी हवा देता है
और देता है इज़ाजत
कि उठा सकूं मैं हाथ
हिल सकूं,नाच सकूं आज
मगर फिलहाल अभी तक
आदत से सीलिंग फैन की
ऐसा दिल को नहीं
 विश्वास हुआ है
कि उसे स्वतंत्रता है
सीमा तक कुछ करने की
इसलिए आज़ादी के
इतने सालों बाद भी
गर्दन झुकी  ही है
शरीर मुड़ा ही है
आँखें शंकालु ही हैं
सीलिंग फैन के अहसास से
देखें कब आँखें खुलेंगी
अहसास होगा,दिल को
कि अब स्वतंत्रता है
क्योंकि मेरा कमरा

मेरा नहीं,अपितु है
नक्शा मेरे देश का।