Wednesday, 9 April 2014

जाने कब

जाने कब अपने बंधन की तोडूंगा हथकड़ी।
यूं भोगी हैं मैंने भी, गौतम सी पीड़ाएं कई।।

जाने कब अपने मन की खोलूंगा खिड़की।
यूं रची हैं मैंने भी, व्यास सी ऋचाएं कई।।

जाने  कब अपने जीवन में सुबह नयी आयेगी।
यूं पायीं हैं मैंने भी, भीड़ सी सफलताएं कई।।

जाने कब अपने तक जाने की राह मिलेगी।
यूं भटके हैं मैंने भी, यायावर से पथ कई।।

जाने कब अपने प्रीतम से देखो आँख लड़ेगी।
यूं पायीं हैं मैंने भी, परवाने सी शोहरत कई।।

@नलिन #तारकेश

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