Tuesday, 8 April 2014

दुःख की आंच 

तुम देवता नहीं हो
 फिर गले लगाना
दुःखों का हलाहल
महादेव की तरह
भला क्यों ठीक है
और फिर यह भी कि
तुम्हारे नीलकंठ को
कौन? क्यों ? पूजेगा
किसे फुर्सत है भला
अपने कंठ भरने से
इसलिए लोग जब
पत्थर निचोड़ देते हैं
तब तुम इस
मक्खन से दिल को
दुःख की आंच में
क्यों नहीं पिघलाते
जबकि तुम्हें पता है
यह पिघल कर
धूल के कणों को
ऊपर तैरा देगा
जिसे तुम  छान कर
फिर जमा लोगे
शुद्ध,  श् वेत -मक्खन।


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