Sunday, 6 April 2014

दो अक्षर - राम


दो अक्षर सरल, सहज जब, मिल बन जाते राम
शब्द भी महिमा मंडित होता, बन जाते हर काम। 

कोटि - कोटि जन तारणहार, ग्यानी मूढ़ को राम  
अमृत रस सागर हृदयंगम,  श्रवण करें जो नाम। 

निर्मल, सत् - चित् , आनंदायक मंत्र एक बस राम 
निर्विकार कर तन - मन बुद्धि, देता आत्म-विश्राम। 

पीड़ित, शोषित, वंचित, वंदित, आशापालक राम 
षट विकार उर- घट भंजक, सतत राम का जाप। 

कलिमल हरण, दोष सब सारे, नाम यही एक राम 
शिवशंकर भी हर क्षण जपते, परम सत्य यह नाम। 

भक्त शिरोमणि अमर कापि का नाम- आधार राम 
नानक, ध्रुव, प्रहलाद, कबीर का खूब हुआ इकराम। 

 निर्गुण राम, सगुण भी राम, निर्विकार है भोला राम 
  उल्टा सीधा एक सामान, ऐसा अदभुत प्यारा नाम। 

  जीते जी साँसों में बहता, मृत्यु बाद भी केवल राम 
  राम नाम कि प्यारी महिमा, अविगत अकथ अविराम। 

 मेरु शैल पर जब आलोकित, होता राम उजास
ब्रह्म रंध्र "नलिन" सहस्त्रदल, करता पूर्ण विकास। 

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