Sunday, 28 May 2023

533: ग़ज़ल- श्रद्धा-सुमन

वो जो चला गया अचानक झकझोर कर हमको। 
तकदीर ने ये अजब,अनकहा जख्म दिया सबको।।

बेहयायी से इस कदर कौन किसको लूटता है।
लकीरें को मगर हाथ की अपनी कैसे मिटाओ।।

सिलसिला ये जिंदगी और मौत का यूँ तो चलन में है।
पता होकर भी याद रहता है कहो तो किस-किस को।।

रोएगा फूट-फूटकर आंखिर कब तलक कहो आदमी।
जिंदगी है सिखा ही देती एकदिन हंसना मगर देखो।।
 
धूप-छांव,सुबह-शाम,दर्द-हंसी की जो है जुगलबंदी।
नादान तुम ये गुणा-भाग कहाँ इसको समझ पाओ।।

हो अगर जो आदमी हर दिल अजीज,अज़ीम,नेकदिल।
याद आएगा,भला कहाँ भुला सकोगे "उस्ताद" उसको।।
 

 नलिनतारकेश@उस्ताद 

No comments:

Post a Comment