Sunday, 21 May 2023

526:ग़ज़ल:-बगैर बहके

भला रुख से उन्हें नकाब क्यों हटानी चाहिए।
देखने को तिलिस्म कूवत भी तो होनी चाहिए।।

हर बात में शह-मात की बिसात बिछा दांव चलना।
कुछ तो अपनी तहजीब-ए-सादगी बचानी चाहिए।।

रंग में अपने शौक से अलमस्त गुजारो जिंदगी।
खुदा के लिए शुक्रगुजारी मगर रखनी चाहिए।।

मसरूफियत में रहते हो चलो ये दौर ही ऐसा है।
कभी हाल-ए-तबीयत घर की भी पूछनी चाहिए।।

मयखाने में लड़खड़ाते हैं कदम हर किसी के "उस्ताद"।
बगैर बहके सर से पाँव नशातारी बनी रहे मुबारक मेरी।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

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