Thursday, 18 May 2023

525:ग़ज़ल:-तेरे दर पर

तेरे दर पर बीत जाए अब ये उम्र सारी।
बस यही रह गई है आरजू एक हमारी।।

हवाओं का रुख बदल देता है हारी हुई बाजी।
तलवार में सान रखना इसलिए ही है जरूरी।।

कहाँ खो गया वो किन ख्यालों में खुली आंखों से।
सोचो कुछ तो बात है जो दिल में गहरे मचल रही।।

एक तसव्वुर जाने कितने जन्मों से बहता चला आया।
हकीकत बना आज तो जाने कैसे हमें झपकी आ गई।।

"उस्ताद" जलवा-ए-फ़न तेरा सितारों सा चमक रहा।
बारीकी से मगर देखने को निगाहें तो चाहिए रूहानी।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

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