Monday, 22 May 2023

528: ग़ज़ल-रूठता हूँ जब कभी मैं

रूठता हूँ जब कभी मैं तुझसे तो मनाता भी नहीं है।
हकीकत न सही ख्वाब भी रंगीन तू दिखाता नहीं है।।

हर कोई थक-हार करता है सजदा दर पर तेरे आकर।
मैं तो झुका हूँ एक मुद्दत से मगर तू पुचकारता नहीं है।।

तेरी हरेक अदा का मुरीद रहा हूँ सुन रसीले सरकार मेरे।
जाने मुँह फैलाए किस बात फिर पहलू में बैठाता नहीं है।।

हो सकता है हो गई हो कोई खता बड़ी भारी मुझसे।
आकर जाने फिर भला क्यों मुझको बताता नहीं है।।

राजे दिल तुझसे नहीं तो भला जाकर कहूँगा किससे।
छोटी से ये बात जाने "उस्ताद" क्यों समझता नहीं है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

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