Sunday, 21 May 2023

527:ग़ज़ल:- दुआओं से चंगा

दुआओं से चंगा हुआ जाए ये तो समझ हमें आता है। 
दवाओं से तो महज बस रंगत-ए-रोग बदल जाता है।।

हर शख्स अपनी बोली में खूब करता गुफ़्तगू जानवरों से।
वो समझ जाए मगर आदम कहाँ आदम को समझता है।।

फासले से मिलो,सुकून रखो,हर हाल बस मस्त रहो। 
यही नेमत है असल,आदमी जिनसे संवरने लगता है।।

लिखना जो चाहो तो लिखा जाता नहीं एक भी शेर।
हाँ जो कभी कलम बहके तो दीवान लिखा जाता है।।

देखो आज एक ताजा ग़ज़ल लेकर सबसे मुखातिब हुआ।
सूरज,चांद नहीं,असल हकीकत "उस्ताद" बयां करता है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

1 comment:

  1. Very well written. Now it's time to publish these all gazals in one book.

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