Friday, 5 May 2023

516:ग़ज़ल:-चांद तारे

चांद पूनम का कुछ रोज वजूद अपना गंवा देगा।
फिलहाल जो इतना हुस्ने जमाल पर इतरा रहा।।

छत पर ही टहलने लगा हूँ एक अर्से से अब तो मैं।
रास्ते पर चलना तो कसम से अब हमें दूभर हुआ।।

यूँ सच कहूँ तो ये उम्मीद है पूरी मुझे आसमान से।
एक-रोज आब-ए-हयात मेरी किस्मत से बरसेगा।।

कांटे गुनगुनाते हैं मेरी हौसलाअफजाई की खातिर।
चमन को भी रेत में चाहिए फूल एक खिलखिलाता।।

यूँ चांद-तारे नीले आकाश से राह दिखाते हैं सभी को।
एक "उस्ताद" ही मगर समझ पाता है उनका इशारा।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

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