Monday, 8 May 2023

519: ग़ज़ल:कितने और सावन हैं देखने।।

नींद आती ही नहीं रात सोएं भला कैसे।
हम भूल जाएं कभी मुमकिन नहीं तुझे।।

अन्धड़ चले जब यादों का दिलो-दिमाग में।
जाने कितने अनगिनत ख्वाब बिखर जाते।।

बहुत दूर आ गए हैं हम अहसास-ए-मसरर्त* से। 
*सुखद अनुभूति 
अब मगर आ ही गए हैं तो क्या कुछ कर सकते।।

हर हवा का झौंका नया होकर भी बासी सा लगता।
अजब गफलत में हैं अब करें तो किसे बदनाम करें।।

"उस्ताद" छोड़िए किस उधेड़बुन में खामख्वाह हैं।
अभी न जाने आपने कितने और सावन हैं देखने।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 



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