Tuesday, 30 May 2023

536: ग़ज़ल:- खुद से झूठ बोलना

यूँ खुद से झूठ बोलना कतई आसान तो नहीं है।
आजकल मगर इस कला में माहिर हर कोई है।।

वो बना तो है जरूर भोला-भाला,गंवार सा दिखने में।
जान लो मगर वही बदलता,हर घड़ी अपनी केंचुली है।।

हर एंगल से खिंचवा कर बांटता है,तस्वीरें जो खुद की।
कहता फिरे वही हमें,जड़ों से टेक्नोलॉजी काट रही है।।

दिल,दिमाग बेच रट्टू तोते सी,सुबह उठकर बांग देना।
बीमारी कोई नहीं चाल बस एक सोची समझी चली है।।

रोशनी पर लगाया इल्ज़ाम अंधेरगर्दी फैलाने का।
बड़ी अजब-गजब नज़ीर उस्ताद" बस आपकी है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

 

Monday, 29 May 2023

535:ग़ज़ल:- तेरे नाम की माला

तेरे नाम की माला मैं जपता जो रहा हूँ।
दिन-ब-दिन बावला और भी हो रहा हूँ।।

सूरज,चांद,बुध,गुरु,राहु-केतु नवग्रह सारे।
हवाले कर सब तुझे आराम से सो रहा हूँ।।

पुरानी करम जो भी किए हैं,उल्टे-सीधे अब तलक।
उखाड़ उन सब को,बीज तेरे दीदार को बो रहा हूँ।।

खिलेगा कभी तो शतदल नलिन,दिल की झील में।
उम्मीद अपनी लेकर बस यही,सुध-बुध खो रहा हूँ।।

रास्ते कतई आसान नहीं,सजदे को तेरी चौखट पर।  
ताब "उस्ताद" इतनी है नहीं,तभी तो बस रो रहा हूँ।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 28 May 2023

534: ग़ज़ल:-हमें नचा कर

हमें नचा कर ही तुम अगर खुश होते हो तो खुश रहो। 
वरना तुमको तो पता अपना हर एक हाल है पर चलो।।  
 
हमें आता नहीं,जिंदगी की बेढब धुनों पर नाचना।
हमें ऐतराज़ भला क्यों,जब बागडोर थामे तुम हो।।

नलिन खिलखिलाते हैं यहाँ से वहाँ कायनात में। 
तुम मुस्कुराते जब प्यार से एक नजर देखते हो।।

रजामंदी के सिवा चारा कुछ है नहीं अपने पास सच कहें।
जो यह सच है अगर तो लेना ये हमारा इम्तहान बंद करो।।

अपना कुछ जब है ही नहीं तो कहो गुरूर हम क्या करें।
बड़ी जादूगरी से "उस्ताद"तुम चलते अपनी चाल को।।                                
नलिनतारकेश @उस्ताद 

533: ग़ज़ल- श्रद्धा-सुमन

वो जो चला गया अचानक झकझोर कर हमको। 
तकदीर ने ये अजब,अनकहा जख्म दिया सबको।।

बेहयायी से इस कदर कौन किसको लूटता है।
लकीरें को मगर हाथ की अपनी कैसे मिटाओ।।

सिलसिला ये जिंदगी और मौत का यूँ तो चलन में है।
पता होकर भी याद रहता है कहो तो किस-किस को।।

रोएगा फूट-फूटकर आंखिर कब तलक कहो आदमी।
जिंदगी है सिखा ही देती एकदिन हंसना मगर देखो।।
 
धूप-छांव,सुबह-शाम,दर्द-हंसी की जो है जुगलबंदी।
नादान तुम ये गुणा-भाग कहाँ इसको समझ पाओ।।

हो अगर जो आदमी हर दिल अजीज,अज़ीम,नेकदिल।
याद आएगा,भला कहाँ भुला सकोगे "उस्ताद" उसको।।
 

 नलिनतारकेश@उस्ताद 

Friday, 26 May 2023

532: ग़ज़ल:- जोश से उड़ाते हैं

सवाल जवाब के दौर से हम उबर चुके हैं।
अब हुजूर अपने रश्क-ए-कमर हो गए हैं।।

कट के जो पतंगे आ जाती हैं अपने आंगन में।
सौंप बच्चों को फिर वो भर जोश से उड़ाते हैं।।

चिलमन से जरा बाहर निकल के तो देखिए। 
नई इबारतें कौन-कौन सी लोग लिख रहे हैं।।

हवा,पानी,आग,मिट्टी,आकाश के पुतले हैं हम।
फ़ना हो जायेंगे उन्हीं में क्यों ज्यादा सोचते हैं।।

कयामत की रात तुम्हारी तो जाने कब आए न आए।
हर दिन,हर रात गले "उस्ताद" बस उसको लगाते हैं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 


531:- ग़ज़ल:- दर्द से भरी हैं

पता है दर्द से भरी हैं राहें मुहब्बत की।
ये बन गई है मगर अब मजबूरी हमारी।।

आने का वादा करके भी वो आए नहीं कल।
दरअसल ये किस्मत भी है करती दग़ाबाज़ी।।

वक्त भी ये कसम से कम जालिम है नहीं।
साथ में उनके है इसकी सांठगांठ पुरानी।।

ख्याली बादलों की,दिल-ए-आसमां पर आवा-जाही।
खूबसूरत तस्वीरें बनाकर उनकी,हमको है दिखाती।।

तमाम खबरें दुनिया भर की पता तो हैं मुझे।
यारब बस एक खबर अपनी ही मिलती नहीं।।

"उस्ताद" नाउम्मीदी भी इस कदर गहरी न पालो।
राख के नीचे सब्र से देखो तो सही,मिलेगी चिंगारी।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Wednesday, 24 May 2023

530: ग़ज़ल:- मुस्कुराओ

अमां यार आओ जरा तो मुस्कुराओ।
रोनी सूरत को अब छोड़ो,मुस्कुराओ।।

दो जरा सी जुंबिश अपने लबों को तुम।
हाँ बस इन्हें ऐसे ही खोलो,मुस्कुराओ।।

ईज़ाद जब से ये दुनिया हुई है,यूँ ही चली।
सुनो सबकी पर मन की करो,मुस्कुराओ।।

रास्ते में मिलो सबसे या कि एकला चलो।
न दे सको खुशी पर खुद तो,मुस्कुराओ।।

समय बदलते देखा है भला किसने कहो तो।
"उस्ताद" कल की जरा न सोचो,मुस्कुराओ।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 



Tuesday, 23 May 2023

529: ग़ज़ल:- किसी से मिलने पर

किसी से मिलने पर बहुत ही थक जाता हूँ मैं।
गम की गठरी दरअसल उसकी ले आता हूँ मैं।।

मुलाकातों से बचने की जो आदत है बस इसीलिए।
ये हल्का अपना ही बोझ भी कहाँ उठा पाता हूँ मैं।।

आ जाओ कभी यहाँ झाँको तो सही दिले रानाइयों में।
दर्द-ए-तकलीफ में कैसे खुलकर ठहाका लगाता हूँ मैं।।

इनायत खुद्दारी की उडेली जो खुदा ने भरकर मुझपर।
सो कहीं हाथ फैलाने से पहले खुद ही रोक लेता हूँ मैं।।
गालिब,मीर फन-ए-सुरूर चढ़ रहा "उस्ताद" तुझमें। 
ग़ज़ल ओढ़ूं ,बिछाऊं हर घड़ी बस यही सोचता हूँ मैं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Monday, 22 May 2023

528: ग़ज़ल-रूठता हूँ जब कभी मैं

रूठता हूँ जब कभी मैं तुझसे तो मनाता भी नहीं है।
हकीकत न सही ख्वाब भी रंगीन तू दिखाता नहीं है।।

हर कोई थक-हार करता है सजदा दर पर तेरे आकर।
मैं तो झुका हूँ एक मुद्दत से मगर तू पुचकारता नहीं है।।

तेरी हरेक अदा का मुरीद रहा हूँ सुन रसीले सरकार मेरे।
जाने मुँह फैलाए किस बात फिर पहलू में बैठाता नहीं है।।

हो सकता है हो गई हो कोई खता बड़ी भारी मुझसे।
आकर जाने फिर भला क्यों मुझको बताता नहीं है।।

राजे दिल तुझसे नहीं तो भला जाकर कहूँगा किससे।
छोटी से ये बात जाने "उस्ताद" क्यों समझता नहीं है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Sunday, 21 May 2023

527:ग़ज़ल:- दुआओं से चंगा

दुआओं से चंगा हुआ जाए ये तो समझ हमें आता है। 
दवाओं से तो महज बस रंगत-ए-रोग बदल जाता है।।

हर शख्स अपनी बोली में खूब करता गुफ़्तगू जानवरों से।
वो समझ जाए मगर आदम कहाँ आदम को समझता है।।

फासले से मिलो,सुकून रखो,हर हाल बस मस्त रहो। 
यही नेमत है असल,आदमी जिनसे संवरने लगता है।।

लिखना जो चाहो तो लिखा जाता नहीं एक भी शेर।
हाँ जो कभी कलम बहके तो दीवान लिखा जाता है।।

देखो आज एक ताजा ग़ज़ल लेकर सबसे मुखातिब हुआ।
सूरज,चांद नहीं,असल हकीकत "उस्ताद" बयां करता है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

526:ग़ज़ल:-बगैर बहके

भला रुख से उन्हें नकाब क्यों हटानी चाहिए।
देखने को तिलिस्म कूवत भी तो होनी चाहिए।।

हर बात में शह-मात की बिसात बिछा दांव चलना।
कुछ तो अपनी तहजीब-ए-सादगी बचानी चाहिए।।

रंग में अपने शौक से अलमस्त गुजारो जिंदगी।
खुदा के लिए शुक्रगुजारी मगर रखनी चाहिए।।

मसरूफियत में रहते हो चलो ये दौर ही ऐसा है।
कभी हाल-ए-तबीयत घर की भी पूछनी चाहिए।।

मयखाने में लड़खड़ाते हैं कदम हर किसी के "उस्ताद"।
बगैर बहके सर से पाँव नशातारी बनी रहे मुबारक मेरी।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

Thursday, 18 May 2023

525:ग़ज़ल:-तेरे दर पर

तेरे दर पर बीत जाए अब ये उम्र सारी।
बस यही रह गई है आरजू एक हमारी।।

हवाओं का रुख बदल देता है हारी हुई बाजी।
तलवार में सान रखना इसलिए ही है जरूरी।।

कहाँ खो गया वो किन ख्यालों में खुली आंखों से।
सोचो कुछ तो बात है जो दिल में गहरे मचल रही।।

एक तसव्वुर जाने कितने जन्मों से बहता चला आया।
हकीकत बना आज तो जाने कैसे हमें झपकी आ गई।।

"उस्ताद" जलवा-ए-फ़न तेरा सितारों सा चमक रहा।
बारीकी से मगर देखने को निगाहें तो चाहिए रूहानी।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Saturday, 13 May 2023

524:ग़ज़ल:- गुरूर नहीं टिकता

रास्तों की पहचान भला कौन सिखा सकता। 
हां जुनून हो तो हर कदम मंजिल को चूमता।।

होश में रहते हुए भी नशा तारी जरूरी है।
बगैर इसके हिस्से का जन्नत नहीं मिलता।।

तुम आओ तो सही कभी उसकी अंजुमन में।
यहाँ प्यासा खुदा कसम कोई भी नहीं रहता।।

रेशमी हवा पायल बजाते इशारे से बुला रही। 
भला देखने में ख्वाब किसी का क्या लगता।।

सितारों के लिबास ओढ़े तुम इतरा तो रहे हो।
"उस्ताद" यहाँ किसी का गुरूर नहीं टिकता।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

523: ग़ज़ल:- खुद को जुगनू करें

चलो एक नया चलन अब शुरू करें।
उतर के दिल में उसके गुफ्तगू करें।।

वो कहीं भी हो बस याद आए हमारी।
ऐसा हिचकियों का उसपर जादू करें।।

बेवजह बेवफा ही जब वो हो गया प्यार में। 
हमें भी क्या पड़ी है मोतियों को आंसू करें।।

हर लफ्ज़ जो भी निकले वो तौलकर हमसे।
जुबां को हम अपनी हक़ीक़ी* तराजू करें।।*असल 

अंधेरों में जब साथ छोड़कर जाएं सभी।
आओ "उस्ताद" हम खुद को जुगनू करें।।

नलिनतारकेश @उस्ताद। 

Friday, 12 May 2023

522: ग़ज़ल:गीताप्रेस शताब्दि वर्ष

रास्ते हजार भटक कर भी तेरे दर तक पहुंचना चाहता है।
आदमी वही लाखों में एक अपनी तकदीर लिख पाता है।।

जंगल,नदी,पहाड़ जाने कहाँ-कहाँ से बमुश्किल जैसे-तैसे।
पानी हर हाल समन्दर में मिल वजूद अपना मिटा देता है।।

वो बावला नहीं दरअसल बन्दा बहुत सयाना निकला।
खबर उसे पूरी है ज़िन्दगी को अपनी कैसे संवारना है।।

सबकी नेकी की खातिर जीवन उसने अपना खपा दिया।
सो जितना भी बन पड़े हमसे साथ उसका तो निभाना है।।

"उस्ताद" ये ज़िन्दगी का दौर नरम-गरम ऐसे ही चलेगा।
हमें तो बस बिना किसी तानों,शिकायतों के इसे गुजारना है।

नलिनतारकेश@उस्ताद। 


Wednesday, 10 May 2023

521:ग़ज़ल:- बहुत कहे फ़साने हमने तेरे लिए

हर किताब मुर्दा हर इल्म गूंगा हो गया।
दिल में उतर कर गहरे जो ठहर न सका।।

बहुत कहे फ़साने हमने तेरे लिए यारब।
तूने मगर हर किसी को अनसुना किया।।

बहार आए तो सूखे दरख्त भी हैं खिल जाते।
इसी एक उम्मीद ने हर हाल हमें जिंदा रखा।। 

कयामत की रात का इंतजार भला क्यों करे। 
तेरे सजदे में हर चौखट जो झुक चलता रहा।।

"उस्ताद" तुम भी कसम से खालिस बेअक्ल निकले।
अपनी नादानी का डंका ऐसे है कौन बजाता भला।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Tuesday, 9 May 2023

520: ग़ज़ल:- उस्ताद से कुछ जलवा सुना है

आँखों में जो काजल उसकी लगा है।
उसी ने रात का सारा आंचल बुना है।।

दिन मदहोश और हैं रातें गुलाबी उसी की। 
करीब जिसे उसके रहने का मौका मिला है।।

एक अजब नजाकत लिए हवाएँ खुशबू बिखेरें।
जिस भी डगर को आने का तेरे अंदेशा हुआ है।।

रोंआं-रोंआं रूह का बस फफक कर बरसे।
हुस्ने जमाल का तेरा जो भी जिक्र करता है।। 

सच कहें कसम से अपना तो कुछ भी तजुर्बा नहीं। 
हाँ उसका बस "उस्ताद" से कुछ जलवा सुना है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद। 

Monday, 8 May 2023

519: ग़ज़ल:कितने और सावन हैं देखने।।

नींद आती ही नहीं रात सोएं भला कैसे।
हम भूल जाएं कभी मुमकिन नहीं तुझे।।

अन्धड़ चले जब यादों का दिलो-दिमाग में।
जाने कितने अनगिनत ख्वाब बिखर जाते।।

बहुत दूर आ गए हैं हम अहसास-ए-मसरर्त* से। 
*सुखद अनुभूति 
अब मगर आ ही गए हैं तो क्या कुछ कर सकते।।

हर हवा का झौंका नया होकर भी बासी सा लगता।
अजब गफलत में हैं अब करें तो किसे बदनाम करें।।

"उस्ताद" छोड़िए किस उधेड़बुन में खामख्वाह हैं।
अभी न जाने आपने कितने और सावन हैं देखने।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 



518:ग़ज़ल: भला कहिए यहाँ कौन किसको चाहता है

भला कहिए,यहाँ कौन किसको चाहता है। 
हर कोई तो बस,अपना मतलब साधता है।।
 
ये खासमखास है,वो है काफिर मेरे लिए।
इसी भरम में अक्सर,आदमी भटकता है।।

दिल-ए-अजीज से भी मिलो,तो एक फासले से।  
क्या ठिकाना आजकल,कब कौन रंग बदलता है।।

उम्मीद पालनी हो अगर,तो बस परवरदिगार से।
यूँ वो तो बिना मांगे तेरी,हर मुराद पूरी करता है।।

वैसे कहो तुम्हें पता ही क्या,भले-बुरे का तुम्हारे लिए।
ये सलीका-ए-फन तो "उस्ताद",बस खुदा जानता है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 6 May 2023

517: ग़ज़ल:-तेरे दर पर सजदे

तेरे दर पर सजदे से निशान जब हमारे बने। 
बस इसी गुरूर के चलते,रूबरू न हो सके।।

सांसे थम सी जाती हैं देख के जब तस्वीर तेरी।
हो हकीकत जब मुलाकात तो क्या हालात बने।।

हर रेशे-रेशे,कतरा-कतरा जब तू ही रहे।
ये है तेरा,ये है मेरा,भला फिर कैसे चले।।

सफर जिंदगी का तंग तो कभी दरियादिली भरा। 
तू जो पकड़ ले अगर हाथ,फिर किसे परवाह रहे।।

तेरी इनायत जो देख सके रंजोगम में भी।
कहो क्यों न उसे हर कोई "उस्ताद" कहे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Friday, 5 May 2023

516:ग़ज़ल:-चांद तारे

चांद पूनम का कुछ रोज वजूद अपना गंवा देगा।
फिलहाल जो इतना हुस्ने जमाल पर इतरा रहा।।

छत पर ही टहलने लगा हूँ एक अर्से से अब तो मैं।
रास्ते पर चलना तो कसम से अब हमें दूभर हुआ।।

यूँ सच कहूँ तो ये उम्मीद है पूरी मुझे आसमान से।
एक-रोज आब-ए-हयात मेरी किस्मत से बरसेगा।।

कांटे गुनगुनाते हैं मेरी हौसलाअफजाई की खातिर।
चमन को भी रेत में चाहिए फूल एक खिलखिलाता।।

यूँ चांद-तारे नीले आकाश से राह दिखाते हैं सभी को।
एक "उस्ताद" ही मगर समझ पाता है उनका इशारा।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

ग़ज़ल:515:-दुआ मांगता है

  उम्र हो गई हमारी हमें अच्छे से पता है।                            मानता नहीं दिल बस यही एक खता है।।

  देख कर आईना पूछता हूँ कौन हो?                          जवाब उसका सुनना मगर सजा है।।   

 सितारों को टांकने का वादा जमीं पर।                   दोहराना आज भी कहाँ की वफा है।।

 तेरे मेरे दरमियाँ जो हुए खूबसूरत वाकए।                   आज तलक बस वही सुकूं दिला रहा है।।

 कट जाए आगे भी जैसे कटी आज तक।                    खुदा से "उस्ताद" यही दुआ मांगता है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 


Thursday, 4 May 2023

514:ग़ज़ल:- पूनम का चांद

बमुश्किल इन्तज़ार के बाद पूनम का चांद दिखता है। 
आने के बाद जो रात का सारा अन्धेरा मिटा देता है।।
जो लड़ता है पूरी जद्दोजहद से मौत के मुँह में जाकर।
यकीनन खुदा भी हर वक्त उसका पूरा ध्यान रखता है।।
हर तरफ है बस एक जलजला सा ये दौर कैसा आया।
तार-तार कोई न कोई हर रोज इंसानियत कर रहा है।।
वक्त आएगा जब कोई फिर से हमारा "राम" आएगा।
इसी मुगालते में हर शख्स यहाँ औंधे सोया पड़ा है।।
"उस्ताद" जो हैं खुद को बताते सारे बुत परस्त हो गए। 
कहो अंधों को फिर यहाँ कौन भला आईना बेचता है।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Wednesday, 3 May 2023

513: ग़ज़ल :कुदरत भी सलीक़ा सीख रही

कुदरत भी सलीका सीख रही बदलने का आम आदमी से। वैशाख,जेठ में ओला,पानी गजब बरस रहा है आसानी से।।

जो ज्यादा ही शफ़्फ़ाफ* बनके गीत गाते थे इंकलाब के।  सर से पांव तक धंसे दिखते वही कीचड़ में बेईमानी से।।*उज्जवल

क्या-क्या दिखाए थे ख्वाब सुनहरे हमें भरी दोपहरी में।  बेजा हरकतों से अपनी रुला रहे खून के आँसू सभी से।।

  एतबार अब आप पर कोई करे तो कैसे करे जनाब।        झूठ के पुलिंदे टपकते हैं आप की हरेक कहानी से।। 

रोशनी में नहाता दिख रहा अलमस्त शीशमहल जो।            बना है गरीब-गुरबा की जी-तोड़ पसीने की कमाई से।

मगर तुर्रा तो देखिए अभी ठसक वही है "उस्ताद" की।        सब खांसना भूलकर हर बार हंसते हैं बड़ी ही बेशर्मी से।।


नलिनतारकेश @उस्ताद 

512: ग़ज़ल:- उसकी मोहब्बत में

उसकी मोहब्बत में वजूद खुद का मिटाना होगा।
प्यार का उन्वान अब इस तरह हमें पाना होगा।।

वो यूँ तो रहता मेरे दिल में ही है कहीं।  
उसको बस तबियत से खोजना होगा।।
 
वैसे जितना आसान लग रहा उतना है नहीं। 
मगर दरिया ए आग कदम तो बढ़ाना होगा।।

दिल जब उससे लगा ही लिया तो डरना क्या।
दुनियावी जद्दोजहद से हर हाल भिड़ना होगा।।

"उस्ताद" के आगे चलेगी नहीं तुम्हारी चालाकियां।
हर एक कदम दामन अपना बचाकर चलना होगा।।

नलिनतारकेश @उस्ताद 

Monday, 1 May 2023

511: ग़ज़ल दर्द ओ गम

रो-रो कर दिन रात अब तो कट रहे मेरे।

ख्वाब देखने की सजा नैन भुगतते मेरे।।

लिखना चाहता था कुछ लिख गया कुछ और।

उम्र के इस पड़ाव में दौर हैं नए दिखते मेरे।।

कलम तोड़ दिया था एक अरसा पहले।

मवाद पर अभी जा रहे हैं रिसते मेरे।।

तू नहीं आएगा लाख गुजारिश के बाद भी।

पता था मगर ताकना रास्ते कहाँ छूटे मेरे।।

 दर्द ओ गम सारा ग़ज़ल में अपना बहा देते हैं।

"उस्ताद" तो हर वक्त मुस्कुराते दिखते मेरे।।

नलिनतारकेश "उस्ताद "