Monday, 30 December 2019

नववर्ष की पदचाप

नववर्ष की पदचाप,अब सबको,स्पष्ट सुनाई दे रही। 
बस दो कदम,दहलीज पर शान से,नूपुर बजा रही।।
सो मन-मयूर,अह्लादित हुआ,बड़ा आज सबका अभी से।
आस भरी सुनहरी उम्मीदें,कलरव सी,अंगड़ाईयां ले रही।।
उत्साह,उल्लास,उमंग से सजावट होती प्रत्येक द्वार-द्वार।
चटक इंद्रधनुषी रंगोली,हर जगह रोशनी सी है,चमक रही।
नव-संकल्प,नव-ऊर्जा की नव-तरंग हवा में मकरन्द सी।
कल्पना की ऊंची उड़ान का सन्देश हर-सांस में भर रही।। 
है करना अलबेला,सार्थक कुछ अब तो हमें नया निस्वार्थ। 
जय-घोष स्वस्तिवाचन से ओतप्रोत प्रज्ञा ये सीख दे रही।।
@नलिन #तारकेश

Sunday, 29 December 2019

296:गज़ल:खुले आकाश में

खुले आकाश में इन परिंदों को उड़ने दो।
दम न तुम मगर यूं ख्वाबों का घुटने दो।।
मासूम कलियों को न तोड़ो ए बागवां।
सुर्ख़ फूल बन उन्हें भी तो महकने दो।।
वह साजिशों से संभल गया फिसल कर भी।
तोहमत कम से कम अब तो मढना रहने दो।।
मिलकर लिखनी है हमें इबारत बुलंदियों की अभी।
बहा के खून गलियों में यूँ हौसलों को न मरने दो।।
जहालत,नफरत भरी सियासत की इन्तेहा हो गई।
"उस्ताद"अमनो चैन की रोशनी मुल्क में होने दो।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 28 December 2019

295-गजल-दाँत मेरे

दांत  मेरे जुबान मेरी ही काटने लगे।
खा के थाली में छेद लोग करने लगे।।
आंख कान मुंह बंद है गांधी के बंदरों के।
कहो कब कहाँ ये नामुराद सच बोलने लगे।।
गंगा जमुनी तहजीब कागजी बातें रह गई।
चलो शेखचिल्लियों के सपने तो टूटने लगे।।
अमन-चैन का ठेका कब तलक ढोयेंगे हम।
लातों के भूत कब तलक बातों से मानने लगे।।
भेड़ियों की बंद हुई जो हुकूमत मैं बंदरबांट। 
गरीब,नासमझों को निवाला ये बनाने लगे।।
फैसला होना चाहिए"उस्ताद"अब तो आर पार का।
बढ़े कदम जो सही राह कहां अब पीछे हटने लगे।।
@नलिन#उस्ताद

294:गजल-नमाज़ जुम्मे की

नमाज जुम्मे की अब हमारे जी का जंजाल हो रही।
आवाज जो थी अमन-चैन की वही बवाल हो रही।। 
जब चाहा तब मतलब-बेमतलब हाथ मोमबत्ती उठा ली। बता इसे सच की मशाल आगजनी खूब कमाल हो रही।। सियासत में अपने फायदे के सौदे तो सभी बांचते हैं।
जनता मुल्क की पर अब रोज़ बेवजह हलाल हो रही।।
ये कैसे नए जमाने के आलिम*,कुकुरमुत्तों से बढ़ रहे।*बुद्धिजीवी 
बयानबाजी ही जिनकी सितमगरों की ढाल हो रही।।
घुसपैठिए जो लूटने को आमदा हैं उन्हें सिर आंखों बैठा रहे।
वकालत उनकी यही तेरी आंख में सूअर का बाल हो रही।। 
ये उल्टी-सीधी कैसी पढ़ाते हो पट्टी तकरीर से अपनी। 
प्यार-मोहब्बत की बातें तो सब महज ख्याल हो रही।।
नेट में फंसा रहे मजलूम,मासूम मछलियां शिकार को।
डिजिटल इंडिया की तबीयत खामखां बेहाल हो रही।।तुम तो जो करो या कहो वो सब सवाब* से है लबालब  भरा।*पुण्य 
"उस्ताद"हमारी ही कथनी,करनी कहो क्यों सवाल हो रही।।
@नलिन #उस्ताद

Thursday, 26 December 2019

राम राम राम

श्री राम
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रविकुल नायक,दीप्तमान-मुखकांति,अमित सजी है।
पीत-झगुली,रेशम तन झीनी,कुंतलराशि घुंघराली है।।
रक्तवर्ण-तिलक,भाल-सुशोभित,अद्भुत छवि न्यारी है। कोटि-कोटि मनोज लजावत, रूपराशि प्रभु प्यारी है।। बांकी लीला देख के इनकी,माया भी सुध-बुध भूली है। शेष,शारदा पार न पाए,कीरती ऐसी अविरल बहती है।।
हृदय-विराजत,तारकेश-छवि पर,चरणाश्रित बलिहारी है।
निर्मल,नील-नयन सी मृदुल देह,आँखन सबके बसती है।। 
जाने कितनी जनम-जनम की,साध ये पूरी आज हुयी है।
अब ना जाना कहीं छोड़ के,तुमसे बस अरदास यही है।।
@नलिन #तारकेश

Wednesday, 25 December 2019

293-गज़ल उम्र होती है

नौजवानी Happy Christmas to all 
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उम्र होती है यार एक इतराने की।
खुली पलकों में ख्वाब सजाने की।।
टोका-टाकी लाख करे चाहे कोई।
गढ़ती है रोज इमारत फसाने की।।
नशातारी रहती है जिस्म से रूह तक ऐसी।
कहाँ होश है इसे,कदम संभाल चलाने की।।
सूरज,चांद,दरिया सब बांधके मुट्ठी में।
किसे फिक्र रहती भला जीने-मरने की।।
हवा के घोड़े हाँकती,तलाशे-कस्तूरी मसरूफ दिखे। 
"उस्ताद" अजब है कहानी इस नौजवानी की।।
@नलिन#उस्ताद

Thursday, 19 December 2019

292-गज़ल:जो जो तुमने कहा

जो-जो तुमने कहा था वही हम कर रहे।
जाने बदनाम क्यों अब तुमही कर रहे।।
कलम होनी थी जिस हाथ में इल्म* के लिए।*हुनर         उसी में संग* ले तुम जंग की तैयारी कर रहे।।*पत्थर 
बहस-मुबाहिसा होती हैं रगबत* भरी तहकीक**से।
*प्यार  **जाँच-पड़ताल 
नासमझ तुम तो गालियों की बस जुगाली कर रहे।।
है आसां नहीं पनघट की राहें सभी जानते।
मगर तुम तो राजनीति हिंसा भरी कर रहे।।
आशियाना जलेगा तो महफ़ूज* कौन होगा कहो तो।*सुरक्षित 
ऐसी बात जाने क्यों चिंगारी भड़काने की कर रहे।। 
खौफ,आगजनी की बिसातें भड़का के सरेआम।
"उस्ताद" खरी बात तुम मुल्क से गद्दारी कर रहे।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 18 December 2019

मीरा की भक्ति

पग नूपुर बांध मीरा जो जीवन-पर्यंत मगन भाव से नाची थी।
कृष्ण पर यही तो उसकी अपरिमित,अटूट-अमर निष्ठा थी।
उसकी राह वरना कहो तो क्या कुछ कम रपटीली थी।
हजारों झंझावतों भरी जिंदगी उसकी कंटकाकीर्ण थी।
मगर वह तो कृष्ण-कृष्ण कहते इतनी भाव-विभोर थी।उसे कहाँ फिर जरा देह,मन,बुद्धि,चित्त की सुध-बुध थी।
देह में रहते हुए भी वह असल में देहातीत ही हो गई थी।आत्म रूप से वह अपने प्रीतम के प्रेम पाग में पगी थी।
आठों याम उसकी धड़कनों में सांवले की बंसी बजी थी। अनुराग के मोर-पंख फैलाए,नाचती-कूकती फिरती थी।हाथों में इकतारा,खड़ताल लिए रसधार सी बरसती थी।
विष भी तो वह सहज,सरल सुधा-प्रसाद समझ पीती थी। गली-गली मतवाली वो तो बांवली गोपी बनी फिरती थी। कृष्ण-तत्व को जो बुझ सकी वह तो सच में अलबेली थी।
सदेह समा गई कृष्ण में ये बस अद्भुत मीरा की भक्ति थी।

Tuesday, 17 December 2019

291:गजल:मज़े में कश्ती

मजे में कश्ती हमारी भरोसे राम के चल रही है।
बेवजह ये बात जाने क्यों लोगों को खल रही है।।
यूँ कहने की आदत मुँह-देखी हमारी रही नहीं।
जो कही खरी-खरी तो नाराजगी उबल रही है।।
रात है या सुबह कुछ खबर न रही अब तो।
पाने की तुझे मौज इस कदर मचल रही है।।
कुछ होते रहें सवाब*हमारे हाथों से भी बस।*पुण्य 
वरना तो ये जिन्दगी हर हाल फिसल रही है।।
बेजान थी जो हमारी दुनिया ना उम्मीदी की हद तक।
आहट से मगर उसकी देखो अब ये भी बदल रही है।।
हकीकी*इश्क में"उस्ताद"खामोश हो गया।*ईश्वरीय
तसदीक* को दिले जज़्बात बस ये ग़ज़ल रही है।।*सत्यापन 
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 15 December 2019

290:गजल:इंद्रधनुषी काजल

इंद्रधनुषी काजल लगाते रहे।
काफिलों से अलग बढ़ते रहे।।
मस्ती की पायल हंसी फूलों सी।
जिंदगी का साथ यूँ निभाते रहे।।
अंधेरे तो मिले यूँ हमें हर मोड़ पर।
रोशनी से खुद की राह सजाते रहे।।
उससे मिलने की बेकरारी थी हमें।
सो खुद से भी राज ये छुपाते रहे।।
सुरमई है खुद में ये जिन्दगानी।
सो बेसुरे ही बेवजह कूकते रहे।।
बदनाम काफिर से चाहे"उस्ताद"हुए।
बुतपरस्ती से मगर रूबरू ख़ुद से होते रहे।।
@नलिन #उस्ताद

राम भरत जी

मर्यादा की उत्कृष्ट,पराकाष्ठा हैं अपने राम जी।
तो समर्पण की,एकनिष्ठ प्रतिमूर्ति हैं भरत जी।।
वचन-पालन,वर्ष चौदह,गहन-विपिन भटकते हैं राम जी। चरण पादुका की,सेवा में तत्पर,सतत रहते हैं भरत जी।। कोल-किरात,रीछ-वानर,दुलारते सभी को तो हैं राम जी। 
बन रामसेवक,सकल प्रजा का ध्यान,रखते हैं भरत जी।।   जीत के रण,निशाचर-विहीन धरा को बनाते हैं राम जी।
अयोध्या को बस प्रेम और प्रेम से संवारते हैं भरत जी।।
विभीषण,सुग्रीव को राजपाट-अखण्ड,दिलाते हैं रामजी।
राजमद पंक से तो,"नलिन"से अछूते हैं,अपने भरत जी।।
एक छन राम को मन,बुद्धि,वाणी न बिसारते हैं भरत जी। आँखों में भरत को पुतली सा तभी तो सजाते हैं राम जी।
@नलिन#तारकेश 

Saturday, 14 December 2019

गज़ल:289-गरेबान अपने

गरेबान अपने झांकते रहिए।
खुद से नजरें मिलाते रहिए।।
ख्वाबे तामील में हो चाहे दूरी दरिया सी। 
आंखिरी सांस तक हौंसले से तैरते रहिए।। 
क्या-क्या कहा तेरे खिलाफ किस-किस ने।
बेवजह आप इस पर ना सर खपाते रहिए।।
दूरी हो चाहे लाख आपकी दिलदार से।
शबेरोज शिद्दत से बस पुकारते रहिए।।
रब तो बस जज़्बात का भूखा है "उस्ताद"।
दिल में बसा उसे रस्मे दुनिया निभाते रहिए।।
नलिन #उस्ताद

Friday, 13 December 2019

288:गज़ल-जुल्फ लहरा के

लहरा के जुल्फ जो आंचल खोला उसने।
फलक से चांद सितारों को बटोरा उसने।।
दिले दहलीज पर रख महावर लगे पाँवों को।
जन्नत सा हंसी सजा दिया आशियाना उसने।।
रूप-रंग,जात-पात ये तो बेवजह के शगल हैं।
प्यार है क्या शय* प्यार से समझा दिया उसने।*चीज
शबेइंतजार लो हुआ खत्म शबेवस्ल*हो गई।*मिलनरात्रि
देर हुई तो सही पर शबेरोज* सजाया उसने।।*हर वक्त 
शफक*ए नूर आंखों से उतरता नहीं अब तो।
*क्षितिज की लाली
चौखट "उस्ताद" की जो सर झुकाया उसने।।
@नलिन #उस्ताद

Thursday, 12 December 2019

प्रेम है सूक्ष्म

प्रेम है सूक्ष्म,असीमित अति,इसे स्थूल-देह से न नापिए। 
ये है परम दिव्य-भाव,इसे आप,सदा हृदय में संजोइए।।
सृष्टि दृढ़-आधार है यही,बस इसे सहज आप स्वीकारिए। 
श्वांस डोर बांध इसे,मुक्त गगन नित्य ही,पतंग सा उड़ाइए।
निष्कपट निस्वार्थ होकर सदा,आनंद नित्य ही पाइए। 
कभी ना इसे आप अपने,छुद्र-मलिन सांचे में ढालिए।।
विस्तार है अनंत इसका,आप जरा ध्यान से विचारिए।
जड़-चेतन प्रेम से है सराबोर,उस रसधार से नहाइए।।
है यही ब्रह्मांड की परम-शक्ति,सत्य यही बस एक मानिए।
कर्म,बुद्धि,ज्ञान हैं व्यर्थ के बस,सो सदा प्रेम को अपनाए।।
है जीवन प्रेम-उत्सव दीप्तिमान,हर घड़ी को संवारिए।
देह,मन,बुद्धि,आत्मा को,इसकी सुवास से महकाइए।।
सूत्रधार समस्त ब्रह्मांड के,श्री सीतारामजी को जानिए। 
आप तो बस प्रेम भाव से,श्रीचरण,भाव अश्रु पखारिए।।
@नलिन#तारकेश

Wednesday, 11 December 2019

हुआ नाद ब्रह्म से

हुआ नाद ब्रह्म से,समस्त सृष्टि का आविर्भाव है।
तारकेश-महादेव के डमरू से,बस ये संभाव्य है।।
सप्त स्वरों के विविध श्रृंगार का,ये अद्भुत परिणाम है।
सुर,लय,ताल छंदबद्ध सृष्टि का,रचा समस्त विधान है।। नाभिकीय विखंडन या संलयन से,हुआ काल का प्रवाह है। 
नीलकंठ त्रिनेत्र की,पलक खुली-बंद का,वही तो सारांश है।। 
क्षीरोदधि पर बना विष्णु का,शेषनाग जो रम्य निवास है। ब्रह्मांड की अनंत-आकाशगंगा का,वही सूक्ष्म विस्तार है।।यूं तो सृष्टि में हैं अनेक ग्रह,जहाँ जीवन का अनुमान है। रमणीय धरा में  मगर अपनी,मात्र नवग्रहों का प्रभाव है।।
दुःख,सुख जो है जगत में,वही नीर-क्षीर बाहुपाश है। राजहंस सदृश बनके हमने,होना सदैव विवेकवान है।। साधना और साधना से फैलती कस्तूरी की सुवास है।
मृग मरीचिका न भटके मन तो दिखता रामप्रकाश है।।दृश्य सारा जगत यूँ कहें तो बस एकमात्र आभास है।
हाँ यदि रहें श्रीचरण आश्रित तो अवश्य ही उद्धार है।।
@नलिन #तारकेश

Monday, 9 December 2019

स्थूल से सूक्ष्म

स्थूल से सूक्ष्म को अग्रसर सदा,यही जगत व्यवहार है।
देह तो है एक यंत्र बस,होना असल रूह से सरोकार है।।
बरतना प्रेम,करुणा,दया,निष्ठा यही सब तो सद्व्यवहार है। 
उतारना जीवन में इनको,यही स्वयं पर,एकमात्र उपकार है।।
प्रकृति-पुरुष का मेल सम्यक्,सृष्टि का नियत व्यापार है।
हो एक दूसरे पर सहज समर्पण,यही ईश का विधान है।।
है प्रति श्वास निश्चित,सुकर्म ही सदा रहा सदाचार है।।
प्रारब्ध जो है बदा,वो भी अपने सुकर्म का समाचार है।।
नित्य कर्तव्य कर्म करते,फल का यदि नहीं इंतजार है। विदेह सा फिर तो,वो जीव सदा ही,रहता निर्विकार है।। 
कृपा स्वरूप,जो मिली यह नर देह,हमें ये पुरस्कार है। 
करुणा सागर,श्री चरण प्रभु को,साष्टांग नमस्कार है।।
@नलिन#तारकेश 

287: गजल-खुद से ही

खुद से ही हम तो बतियाते रहे।
मजमून* ग़ज़ल का यूं पाते रहे।।*विषय
दिया है खजाना बेशुमार उसने भीतर। 
डूब के हम तो गहरे बस निकालते रहे।।
ऐसे तो कभी कोई सुनता नहीं हमारी।
सो बिना चूके हम अशआर* सुनाते रहे।*शेर का बहुवचन 
जाड़ों में धूप बमुश्किल है मिलती। 
सो फुर्सत निकाल बस सेकते रहे।।
कहा तो कुछ नहीं उसने हमसे मगर।
दिन के उजाले भी ख्वाब सजाते रहे।।
यूँ खाए तो बहुत धोखे हमने करीब से।
हर कदम फिर भी हंस के ही मिलते रहे।।
अंधेरा है बहुत ये कहने के बजाए।
बस "उस्ताद" हम चराग जलते रहे।।
@नलिन#उस्ताद

Sunday, 8 December 2019

286:गज़ल-कट गयी यार जब

कट गयी जब यार सबकी ये जिन्दगी जैसे-तैसे।
उम्मीद है फिर कट जाएगी हमारी भी जैसे-तैसे।। 
लगाना न तुम यहाँ पर दिमाग कतई यार मेरे।
चलो देखो चल तो रही है न जिंदगी जैसे-तैसे।।
बेकार है सच में उसूल-वसूल की बात सारी।
करिए आप जोड़-तोड़ बेशर्मी भरी जैसे-तैसे।। 
आरक्षण की बैसाखी देते रहिए आप जी भरके।
आखिर सरकार आपने भी है चलानी जैसे-तैसे।।
खानी है चैन से अगर आपने हर रोज़ दाल-रोटी।
पी लीजिए बेमन सही घूंट अपमान की जैसे-तैसे।। 
होगी इनायत ऑखिर किसी रोज तो मेरे राम की।
बस इसी उम्मीद में रात अपनी कट रही जैसे-तैसे।।
उसने मुझे बहलाया या कह लीजिये कि मैंने उसे।
बहरहाल काट ली "उस्ताद" ये जिंदगी जैसे-तैसे।।
@नलिन#उस्ताद

Saturday, 7 December 2019

श्री राम जय राम

अनन्त गगन से विस्तारमयी एकमात्र श्री राम हैं।
यूँ देव तो अनेक हैं मगर ब्रह्म एकमात्र श्री राम हैं।। 
वाम में सुशोभित जगत-जननी,वैदेही विराजमान हैं।
लखन,भरत,रिपुदमन संग अजर-अमर हनुमान हैं।।
रूप,सौन्दर्य पर आपके शतकोटि मदन द्वारपाल हैं।
भाव-विरल ही नहीं भाव सजल भी एकमात्र आप हैं।।
साधु-सुशील,कुटिल-नीच सबके एक आस-विश्वास हैं।
समस्त-सृष्टि,रोम-रोम सिर्फ समाहित श्री सीता राम हैं।।
"तारकेश"महादेव के आप इष्ट रूप जगत विख्यात हैं।
भक्त समस्त निहार आपको"नलिन"सदृश निहाल हैं।।
@नलिन#तारकेश

Friday, 6 December 2019

285:गजल:कनखियों से देखा

कनखियों से देखा उसने मुझे तो बांवला हो गया। 
हर अदा उसकी जा-निसार*दिल ये मेरा हो गया।।*समर्पण 
कभी-कभार ही दिखा है बमुश्किल वो मुझे ख्वाब में। झलक से एक ही मगर प्यार का शुरू ककहरा* हो गया।।*वर्णमाला alphabet
जुगत कोई मालूम नहीं जिससे वो मुझे चाहने लगे।
हाँ जिसे उसने चाहा वो बस उसका अपना हो गया।।
हर आहट लगता है जैसे साँवला आ गया हो घर मेरे ।
रोज का ही मगर ये तो सिलसिला अब झूठा हो गया।।
स्वांग कर रहा था मैं तो महज यूँ ही उसका होने का।
खुदा जाने "उस्ताद" दिल ये कब उसका हो गया।।
@नलिन#उस्ताद

286:गजल-कैसे भला

कैसे भला बोकर बबूल गुलाब की खेती करोगे।
जिस्म की नुमाइश परोस कहाँ तुम नेकी करोगे।।
धन-पिपासु बनकर तुमने शर्म नैतिकता तो सब बेच दी।
दिखा अश्लील फिल्म/विज्ञापन तुम बस वसूली करोगे।। मर्यादा,संस्कार की जब भी अगर कोई दलील देगा। अभिव्यक्ति की आजादी बता कुठाराघात ही करोगे।। माफी,जमानत हर बात या बस सजा थोड़ी सी देकर। 
आँख पट्टी बाँध,सालों-साल सुनवाई की गलती करोगे।।
वर्दी से बेखौफ,गुंडे-मवाली हर गली जो आम दिख रहे।
लचर शासन-प्रशासन रहे अगर यूँ ही जबरदस्ती करोगे।।
खोह में घुसे रहोगे जब तलक खुद को महफूज समझ के। होंगे अनाचार तब तलक,प्रतिकार जब तक नहीं करोगे।।
जरा सोचो जंगलराज कब तक चलेगा आज के नए दौर में। 
"उस्ताद"कैसे कल्पना साकार तुम भला रामराज की करोगे।।
@नलिन#उस्ताद

Wednesday, 4 December 2019

284-गजल:हम कभी चुपचाप

हम कभी चुपचाप तो कभी फूटकर रोते हैं। 
मगर जाने क्यों लोग तो यहाँ रोने से डरते हैं।। 
सारा खारापन निकालते हैं ये अश्क आपका।
तभी तो कभी हम बेवजह भी आँख भरते हैं।।
रोने की रस्म अदायगी दिखती है यहाँ आजकल तो।
मेकअप न बिगड़े गिल्सरीन लगा बस सब देखते हैं।।
सूखे दरिया सी महज़ रेत ही बिखरी है ओर-झोर।
तभी सब लोग यहाँ तो किरकिरी से चुभते रहते हैं।।
दुनियावी ख्वाहिशें रोज़ चक्की सा पीसती आपको।
मगर कभी रूहानी जज्बात भी खूब रुलाते रहते हैं।।
मानो ये न मानो मगर सौ फीसदी ये हकीकत रही।
रूह की पाकीजगी हर बड़े"उस्ताद"इसी से पाते हैं।।
@नलिन#उस्ताद

Tuesday, 3 December 2019

283:गजल:यहाँ सिवा तनहाई के

यहाँ सिवा तन्हाई के हमने तो कुछ भी कमाया नहीं। 
किसी से क्या गिला करें जो रब को अपनाया नहीं।। लकीर के फकीर बन जिंदगी सारी गुजार दी। 
नशातारी डूबो गई होश हमें कभी आया नहीं।।
ग़ुरबतों* का रोना रोते रहे बेवजह हम तो।*विवशताओं 
दिया था बहुत उसने मगर हमने समीहा*नहीं।।*प्रयास 
नासमझ हम भटकते रहे,नहीं जाना पाना क्या है। 
बटोरा सारा रेत,कंकर बस जवाहर*संभाला नहीं।।*रत्न
पढ़ाया था"उस्ताद"ने जो सबक हमको प्यार का।
क्या कहें खोट मन की,उसे हमने दोहराया नहीं।।
@नलिन#उस्ताद

Monday, 2 December 2019

282:गज़ल:जबसे लौ मेरी

जबसे लौ मेरी तुझसे लगने लगी है।
धड़कन इस दिल की बढने लगी है।।
लाख निकलूं चुपके जो तेरी गली से। 
जोर से ढीठ पायल खनकने लगी है।।
इत्तर-फुलेल लगाने की जरूरत नहीं अब तो। 
अहसास से तेरे रूह भी मेरी महकने लगी है।।
हर जगह तू ही तू अब है दिखता मुझे। 
इश्क में खुमारी गजब ये चढने लगी है।।
क्या लिखूं,कैसे लिखूं जलवों को तेरे।
कलम भी "उस्ताद" बहकने लगी है।।
@नलिन#उस्ताद