I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Monday 30 December 2019
नववर्ष की पदचाप
Sunday 29 December 2019
296:गज़ल:खुले आकाश में
Saturday 28 December 2019
295-गजल-दाँत मेरे
294:गजल-नमाज़ जुम्मे की
Thursday 26 December 2019
राम राम राम
Wednesday 25 December 2019
293-गज़ल उम्र होती है
Thursday 19 December 2019
292-गज़ल:जो जो तुमने कहा
Wednesday 18 December 2019
मीरा की भक्ति
Tuesday 17 December 2019
291:गजल:मज़े में कश्ती
Sunday 15 December 2019
290:गजल:इंद्रधनुषी काजल
इंद्रधनुषी काजल लगाते रहे।
काफिलों से अलग बढ़ते रहे।।
मस्ती की पायल हंसी फूलों सी।
जिंदगी का साथ यूँ निभाते रहे।।
अंधेरे तो मिले यूँ हमें हर मोड़ पर।
रोशनी से खुद की राह सजाते रहे।।
उससे मिलने की बेकरारी थी हमें।
सो खुद से भी राज ये छुपाते रहे।।
सुरमई है खुद में ये जिन्दगानी।
सो बेसुरे ही बेवजह कूकते रहे।।
बदनाम काफिर से चाहे"उस्ताद"हुए।
बुतपरस्ती से मगर रूबरू ख़ुद से होते रहे।।
@नलिन #उस्ताद
राम भरत जी
Saturday 14 December 2019
गज़ल:289-गरेबान अपने
Friday 13 December 2019
288:गज़ल-जुल्फ लहरा के
Thursday 12 December 2019
प्रेम है सूक्ष्म
Wednesday 11 December 2019
हुआ नाद ब्रह्म से
Monday 9 December 2019
स्थूल से सूक्ष्म
287: गजल-खुद से ही
Sunday 8 December 2019
286:गज़ल-कट गयी यार जब
Saturday 7 December 2019
श्री राम जय राम
Friday 6 December 2019
285:गजल:कनखियों से देखा
286:गजल-कैसे भला
Wednesday 4 December 2019
284-गजल:हम कभी चुपचाप
Tuesday 3 December 2019
283:गजल:यहाँ सिवा तनहाई के
Monday 2 December 2019
282:गज़ल:जबसे लौ मेरी
Saturday 30 November 2019
281:गजल-अपने हैं जो भी
280:गज़ल-दर्द में तो
Thursday 28 November 2019
279:गजल-जब तलक हम
Wednesday 27 November 2019
278-गज़ल:तौबा-तौबा हम लिखते क्या हैं
Monday 25 November 2019
277-गज़ल:जब भी देखता हूँ
Sunday 24 November 2019
गज़ल: 276 - चाहतें तुझे पाने की
गडल:275-गोदी में अभी
Thursday 21 November 2019
गजल:274-कभी खिलखिलाने रोज़ पड़े
गजल:273-भीगी जुल्फें
Monday 18 November 2019
272:गज़ल-आँखों में चढ़ी है
Saturday 16 November 2019
271:गजल-ख्वाब में भी दिखते रहो
Friday 15 November 2019
गजल-270:हाथों में पकड़ा दिया
Wednesday 6 November 2019
गजल-269:पीनी शराब
Tuesday 5 November 2019
268:गज़ल:आईना अपना तोड़ के आना
267:गजल
Monday 4 November 2019
गज़ल 266:अपना ही जब न हो सका आदमी
दो पुस्तकें संगीत पर
Saturday 2 November 2019
गज़ल-265:अपने ही शहर में
Friday 1 November 2019
गजल-264:चेहरे से हटा कर जुल्फें
Thursday 31 October 2019
गजल:263-हमारी हर आह पर सवाल है
Friday 25 October 2019
गजल-262:मिलें हों दिल तो
Wednesday 23 October 2019
गजल-261:दिल आज परेशान है
Tuesday 22 October 2019
गजल-260 :जन्नत के ख्वाब
गजल-259 : बेपरवाही में
Friday 18 October 2019
गजल-258 :खरामां-खरामां
गजल-257:परवाने को
परवाने को अपनी मंजिल मिली थी।
आँखों में उसे एक चिंगारी दिखी थी।।
यूँ ही नहीं उमड़ा है प्यार उसके लिए।
देखते ही दिल में एक बाती जली थी।।
खुले आसमां में डोलते हों जैसे बादल।
उसकी अदा उसे यूँही बिंदास लगी थी।।
हवा में हिचकोले खाती पतंग के जैसे।
बातों से अपनी वो तो पलटती रही थी।।
परिंदों की तरह चहचहाना बात-बेबात।
आदत ये उसको बहुत पुरानी पड़ी थी।।
मुद्दतों"उस्ताद"जज्बात रोके हुए था।
बरसात तो गोया अब ये थमनी नहीं थी।।
@नलिन#उस्ताद
Thursday 17 October 2019
गजल-256:घुट-घुट के
घुट-घुट के यूँ न आप जिया कीजिए।
कहीं न कहीं तो दिल लगाया कीजिए।। नादानी में भी छुपी है कुछ बात बड़ी।
बच्चों से ये जरा सीख लिया कीजिए।।
बहुत बदल गया है ये जमाना हुजूर।
जरा चश्मा तो अपना नया कीजिए।।
पेशानी में बल क्यों पड़ते हैं आपके।
लबों को कभी तो खिलाया कीजिए।। जमाना दिखता है आप जैसा देखना चाहें। खुद का दामन तो कभी टटोला कीजिए।।
"उस्ताद"दो घड़ी की है ये जिंदगी केवल।महकिए और सबको महकाया कीजिए।।
@नलिन#उस्ताद
Wednesday 16 October 2019
गजल-255:हमें याद करना
फुर्सत मिले तो हमें याद करना।
कभी हमारी भी पूरी मुराद करना।
माना हम नहीं हैं काबिल तेरे।
कभी तो मगर इमदाद* करना।*मदद
दूसरों को शिकस्त देने से पहले।
खुद के भीतर जरा जिहाद* करना।।*धर्मयुद्ध
घोड़ा-गाड़ी,सोना-चाँदी छोड़ कर।
प्यार की हांसिल जायदाद करना।।
हर जगह अंधेरा गला घोंट रहा अब तो।
इल्म ओ हुनर से इसे आबाद करना।।
हो जाती है गुस्ताखी हर किसी से।
माफ हमें तू"उस्ताद"करना।।
@नलिन*उस्ताद
Monday 14 October 2019
गजल-254: निगाहों में उसकी एक समंदर
निगाहों में उसकी एक समंदर बसता है।
तभी तो वो शायद नमकीन लगता है।।
मचल के तोड़ देता है समंदर सब किनारे।
आसमां से जब भी चांद इशारे करता है।। डूबना भी चाहो तो कहां आसां है डूबना। मौजों से अपनी वो ही किनारे पटकता है ।।
जाने कितनी नायाब राज छुपाए हैं सीने में। बाहर से चाहे ये बड़ा ही खामोश रहता है।। हो चाहे जमाना समंदर के जैसा भरमाता बड़ा गहरा।
"उस्ताद"को तो बस ये बाजीचा*-ए-अतफाल**लगता है।।*खिलौना **बच्चे
(बच्चों का खिलौना)
@नलिन#उस्ताद
साईकिल की सवारी
एक पहल छोटी ही सही
☆☆☆卐卐卐☆☆☆
आओ पैडल मारें एक सुकूं भरी जिंदगी पाने के लिए।
आओ साइकिल चलाएं हम धरा को बचाने के लिए।।
पहल ऐसी सार्थक करनी तो होगी कभी ना कभी।
बना के मुहिम क्यों ना करें कुछ जमाने के लिए।।
यूं तो कदम बहुत छोटा है इस दिशा में ये एक।
बूंद-बूंद से है भरता धड़ा बस यह दिखाने के लिए।।
सुधरेगा स्वास्थ्य इससे न केवल हमारा बल्कि चमन का भी।
काम आएगी ये तरकीब भी धन अपना बचाने के लिए।।
जो फिटनेस रहेगी तो मुट्ठी में रहेगा जमाना हमारे।
वरना तो हर कवायद बताओ करते हैं हम किसके लिए।।
स्वच्छ भारत मुहिम हो या प्लास्टिक- मुक्त धरा की अपील।
करना तो होगा हमें ही नया कुछ रोकथाम करने के लिए।।
@नलिन#तारकेश
Saturday 28 September 2019
गजल:253 आबे हयात
मुझे कहाँ रदीफ,काफिया मिलाना था।
अपन को तो बस दिल ये बहलाना था।।
जरा सी शिकायत से रूठ जाते हैं लोग।
सो कहीं न कहीं गुबार तो निकालना था।।
नजदीक रहकर भी जब तन्हा ही रहना हो। बेवजह फिर तो किसी से दिल लगाना था।। होठों पर पपड़ियाँ निगाहें गेसूओं से ढकीं।
चट्टान के नीचे एक गमे तो दरिया बहना था।।
सभी मुसाफिरों की मंजिल है आफताब*।
*सूरज(सूर्यात्माजगतश्चक्षु)
मकसद रूह का बस सजना-संवरना था।।
गर्म रेत चल के"उस्ताद"नंगे पाँव आ गया।
उसे तो हर हाल आबे-हयात* गटकना था।।
*अमृत
@नलिन#उस्ताद
Friday 27 September 2019
पिताश्री की कलम से
यह भी खूब रही
○●○●○●○●लघुकथा
हमारे कार्यालय के एक सहायक ने अपने 2 दिन के आकस्मिक अवकाश के आवेदन पत्र में यह उल्लेख किया कि उनके पैर में कील गड़ गई है जिसके कारण वे कार्यालय उपस्थित होने में असमर्थ हैं। 2 दिन बाद जब वे कार्यालयआए तो उनके दाहिने हाथ के अंगूठे में पट्टी बंधी थी और पैर ठीक अवस्था में प्रतीत होते थे। हमारे अधिकारी ने भी इस पर ध्यान दिया और अपनी आदत के अनुसार उनसे पूछ लिया "क्यों डियर पैर की कील क्या अंगूठे के रास्ते बाहर निकल गई है।अवकाश लेने वाले उन सहायक की दशा देखने लायक थी।भुलक्कड़ स्वभाव के कारण उन्हें याद ही नहीं था कि उन्होंने पैर में कील गड़ने का बहाना बनाया था।
=========
जब याद आ जाती तुम्हारी
○●○●○●○●○●○●○●कविता
जब याद आ जाती तुम्हारी।
अधीर मन हो जाता है भारी।
भाग्य की रेखाओं में खींची हैं-
विरह की घड़ियां तुम्हारी-हमारी।।
उस बार का वह मधुर मिलन।
जो हो गया अब एक स्वपन।
क्या फिर कभी मिलन के बादल-
बुझा सकेंगे मेरी विरह जलन?
पावस ऋतु के ये काले बादल।
पीड़ा छिपाए हुए अपने आंचल।
लायेंगे संदेश मेरा ये तुम तक।
बहाना न अपने नैनों का काजल।।
=========
होनहार
○●○●कविता
एक क्षण न पहले हो सकेगा,
कार्य तेरा इस जगत में।
जो लिख दिया है उस ईश ने,
हर बात होना अपने समय में।।
शक्ति कितनी ही खर्च कर,
नर अगर चाहे बदलना।
उस घड़ी का कठिन है,
अपने समय से पलटना।।
हो कर ही रहती है होनहार,
ये मानना पड़ता है सबको।
कर्तव्य करना धर्म अपना,
छोड़ उसी पर फल की आशा को।।
==========
गजल-252:बरसात हो रही
मुद्दतों बाद आज ऐसी बरसात हो रही। तबीयत से भीगो भारी बरसात हो रही।। बच्चे खुश हैं बड़े रेनी डे जो हो गया।
चलाने गली में कश्ती बरसात हो रही।।
सूखा सा रहा सावन औ निकला सूखा भादो।
असौज*के जाते-जाते सारी बरसात हो रही।*आश्विन मास
मिजाजे लखनऊ है शुरू से ही ऐसा।
सो ये उसमें ही ढली बरसात हो रही।।
उमस जा के दुबकी गुलाबी ठंड है छाई। लाने लबों पर हँसी बड़ी बरसात हो रही।।निकालो"उस्ताद"जो है दुछत्ती में संभाली। छलकाने को जाम आज ऐसी बरसात हो रही।।
@नलिन#उस्ताद
Wednesday 25 September 2019
गजल:251:मेरा नाम लेना था
उसकी जुबां को मेरा नाम लेना था।
जमाने को फिर तो हैरान होना था।।
आँखों से आँखें जो मिल गईं।
रूह को हर हाल महकना था।।
उसके सिवा नहीं कोई अपना।
बस यही हमें यार समझना था।।
चेहरे-मोहरे से तो बड़ा भला लगा मुझे। किसे खबर थी रंग उसने बदलना था।।
आँगन से बगैर बरसे गुजर गया बादल।
जाने किसने उसे ये पाठ पढ़ाया था।।
दांव उल्टा तो कभी सीधा ये तो लगा ही है।
इन बातों से कहाँ कब तक झिझकना था।।
पी जो उनकी निगाहे पैमाने से मय।
उस्ताद का वाजिब बहकना था।।
@नलिन#उस्ताद
Tuesday 24 September 2019
गजलः250-खुद बदलना था
दरख़्त से इतना सीखते तो अच्छा था।
लद जाएं जो फल तो हमें झुकना था।।
आँसू बरसाने में कोताही ना करना।
वरना ये दिल तो अंदर ही घुटना था।।
जाड़ा,गर्मी,बरसात हैं मौसम के नजारे। इनका तो हमें हर-हाल लुत्फ लेना था।।
हर घड़ी की फितरत अलग है जनाब।
तालमेल यहाँ तो बस यही बैठाना था।।
वो बुलन्दियों पर चमके सूरज सा तो क्या।
लकीरों को हाथ की हमें खुद बदलना था।।
सफर में जिन्दगी के जो सुकूं चाहो तुम।
"उस्ताद"के मानिन्द खाली हाथ रहना था।।
@नलिन#उस्ताद
Monday 23 September 2019
गजल-249:छनक रही
हर कदम के साथ मेरे पायल छनक रही।
लगता है मेरे साथ-साथ तू भी बहक रही।।
यूँ तो तुझसे बिछड़े एक जमाना हो गया। खुशबू तेरे ख्याल की अब तक महक रही।। फूल ही फूल खिले अहसास के आसपास। शबे महताब सी इस अमावस रौनक रही।।आने की बस उम्मीद में बहारों का मौसम।
टोली हर डाल-डाल परिंदों की चहक रही।।
चलते-चलते जो मंजिल के निशां दिखे। निगाहें थके राही की फिर से चमक रही।। होगा आमना-सामना माशूके हकीकी से। दिले धड़कन तेज लो"उस्ताद"धड़क रही।।
@नलिन#उस्ताद
Sunday 22 September 2019
गजल-248:रात दीवाली हो गई
असली-नकली की पहचान मश्किल बड़ी हो गई।
पेट में आजकल तो सबके ही लंबी दाढ़ी हो गई।।
अपने-पराए सभी चाल चलने में गहरी मशगूल हैं।
शतरंज की बिछी बिसात सी ये जिंदगी हो गई।।
सारे चैनल तो दिन-रात कानफोड़ू बहस कर रहे।
काजी जिसे बोलना था बंद उसकी बोलती हो गई।।
किताबें तो खंगाल ली बच्चों ने सारी की सारी।
कुछ हमसे ही देने में रिवायत*की कमी हो गई।।*परम्परा
प्रोडक्ट ही हो गए हों रिश्ते-नाते सभी जब।
एक-दो साल से ज्यादा कहाँ गारंटी हो गई।।
जिस्म से जेहन सभी खुले-बाजार से सजे हैं।
ये इज्जत-आबरू नीलाम सबकी हो गई।।
काम निकल जाए तो फिर कोई पूछता नहीं।
अब नई ये यूज एंड थ्रो की पाॅलिसी हो गई।
आँखों में"उस्ताद"जबसे इश्के-हकीकी* छा गया।*ईश्वरीय
लो हमारी तो दिन होली,रात दीवाली हो गई।।
@नलिन#उस्ताद
Saturday 21 September 2019
गजल-246:छूने में आसमां
छूने में आसमां खड़ी नई मुश्किलें हो गईं।
शायद ज्यादा ही नाजायज चाहतें हो गईं।
रात भर सोया नहीं समझाता रहा उनको।
अजीबोगरीब बच्चों की फरमाइशें हो गईं।।
गलत तू भी नहीं गलत वो भी नहीं जरा सा।
अलग एक मंजिल की लेकिन तकरीरें* हो गईं।।अभिव्यक्ति/बयान
बदल रहे जमाने की क्या दुश्वारियाँ*कहें हम।*मुश्किलें
चुनौतियाँ तो हर दिन खड़ी मुँह बाए हो गईं।।
अब तो हर कोई काबिल"उस्ताद"हो रहा।
फलसफा*झाड़ने की फजूल जरूरतें हो गईं।।*तर्क/ज्ञान
@नलिन#उस्ताद
गजल-247-दुखती रग
दुखती रग जो मैंने हाथ रख दिया था।
कुछ कहे बगैर वो फफकने लगा था।।
नजूमी हूँ पढ़ पाता हूँ जो चेहरे के तासूर को।
खुदा की इनायत का ये एक छोटा सिला था।।कहें किससे भला तकलीफ और कौन सुने। सभी का हाल-बेहाल यहाँ एक जैसा था।। दफ्न कर नहीं सकते न ही कह सकते किसी से।
दर्दे सैलाब का दरिया रेतीली आँख रिसता था।।
निगाहों में चमक का तबसे अलग ही अंदाज है।
जबसे गुफ्तगू का उससे एक मौका मिला था।
लकीरों में हाथ की दिखते हैं चांद,तारे सभी। हाथ धोकर तभी तो"उस्ताद"पीछे पड़ा था।।
@नलिन#उस्ताद
Thursday 19 September 2019
गजल:245 -वक्त रंग बदलता है
वक्त भी गिरगिट सा क्या गजब रंग बदलता है।
बुलंदियाँ देता है तो कभी नेस्तनाबूद करता है।।
लाने का मुसलसल भले दिनों का जो दावा करे।
लीडर वो दरअसल अपना ही भला चाहता है।।
एक बरसात ने दिलकश बड़ा माहौल कर दिया।
ये मौसम भी न जाने क्या-क्या गुल खिलाता है।।
अजब रंग नए रोज दिखाती है सियासत हमको।
भरने साहब का टैक्स वो हमसे चंदा माँगता है।।
मरता है आम आदमी तो चुहलबाजी सूझती है उसे।
मिला एक दिन मिलावटी सामान तो नेता बौखलाता है।।
निठल्ला बैठना ही जब उसके नसीब में मढा हो।
जाने फिर क्यों खरीदना वो एक घड़ी चाहता है।।
समय रूकता नहीं ये तो सच है किसी के लिए भी।
मगर बुरा दौर आसानी से कहाँ भला गुजर पाता है।।
गए नहीं लगता बहुत दिनों से हुजूर हंसीन वादियों में।
खेलने शिकार तभी तो उन्हें कश्मीर याद आता है।।
चलेंगी न मगर रंगे सियार सी ये हरकतें तुम्हारी।
"उस्ताद"हर आदमी अब अपना हिसाब मांगता है।।
@नलिन#उस्ताद
Wednesday 18 September 2019
गजल:244-दिल समूचा उसका
जिस्म की परवाह नहीं ये नया हो जाएगा।
ये तो बता किस जनम तू मेरा हो जाएगा।।
यूँ तो रहता है हर घड़ी तू साथ हर जगह मेरे।
मगर यह एहसास सच्चा कब भला हो जाएगा।।
झीना सा पर्दा हटना तो तय है हमारे बीच से।
जानना ये है वक्त इसका कब पूरा हो जाएगा।।
उम्मीद की लौ टकटकी लगा दर पर तेरे जल रही।
क्या यह चिराग इस बार भी यूँ ही फना हो जाएगा।।
बहुत बेचैनी भी अच्छी नहीं यूँ तो उस्ताद। मिटेंगे फासले जब दिल समूचा उसका हो जाएगा।।
@नलिन#उस्ताद
गजल-243 शहनाईयाँ
होने को हकीकत हर ख्वाब तैयार है।
हुआ उसे जब से उसका दीदार है।।
फिजा में दिख रही है अभी से नायाब छटा। होगा आगे क्या उसे बस इसका इंतजार है।।
कदम दर कदम सांसो का संग सिलसिला चल पड़ा।
लेने को दिलकश आकार ये आशियाँ तैयार है।।
आँखों में उसके नूरअब कुछ अलग ही दिख रहा।
यूँ अभी तो बस शुरू हुआ प्यार का इजहार है।।
राहें अलग-अलग मिल गईं खूबसूरत मोड़ पर।
करने खैरमकदम* लो यहाँ मंजिल भी बेकरार है।।स्वागत
बजने लगी"उस्ताद"दिले दहलीज पर शहनाईयाँ।
नजदीक आ गई बारात कानों में पड़
रही पुकार है।।
@नलिन#उस्ताद
Tuesday 17 September 2019
गजल-238: चाहता है
गम और खुशी से अछूता दिखाना चाहता है।
वो तो दरअसल मुझे खुदा बनाना चाहता है।।
समझता हूँ मैं उसकी सारी चालाकियाँ।
करना वो अपना उल्लू सीधा चाहता है।। बेतरतीब बिखरे हैं सभी रंग जमाने के।
गमगुसार*बस उन्हें सजाना चाहता है।।*संवेदनशील
यकीनन बड़ा खूबसूरत है कुदरत के साथ रिश्ता।
खुदगर्ज मगर आदमी इसे दोहना चाहता है।।
मट्टी,आकाश,आग,पानी,हवा से बने हैं हम सब।
वो जाने फिर भला क्यों हमें बाँटना चाहता है।।
जिस्म की बात तो होगी चलो जब तक वो साथ है।
"उस्ताद"मगर नब्जे रूह अब टटोलना चाहता है।।
@नलिन#उस्ताद
Monday 16 September 2019
गजल-237:आदमी
भीतर जो कहीं से टूट जाता है आदमी।
नाराज तभी किसी से होता है आदमी।।
थक-हार जब तन्हा भटकता है आदमी।
सहारा हर कदम तब ढूँढता है आदमी।।
हर किसी की है यहाँ फितरत अलग-अलग।
कहो तो कब भला ये समझता है आदमी।।
चाहो जो फूल तो उसके काँटे भी चाहना।
ये सोच कहाँ मगर बना पाता है आदमी।।
शहर दर शहर तलाश करते थक गया सवाब*।*पवित्र कर्म
भीड़ मिली बस उसे कोई न मिला है आदमी।।
जमीं,आसमां बुलन्दियों के झन्डे तो गाड़ दिए।
खुद को भी जीतना था ये भूल गया है आदमी।।
आ जाती हैं जब गले-गले उलझनें नई-नई।
"उस्ताद" की कदर तभी पहचानता है आदमी।।
@नलिन#उस्ताद
234-गजल: बैठ आईने के सामने
बैठ आईने के सामने इबादत करता हूँ।
वो बसा है मुझमें बस ये सच मानता हूँ।।
फंतासी*में बहकने का,जरा भी है शौक नहीं मुझे।*कल्पना
नवाजा जो उसने,बस उस काम से काम रखता हूँ।।
ढूंढू उसे,भला दर-दर भटक कर,क्यों मैं उसे। धड़कनों में अपनी,जब उसे रोज ही सुनता हूँ।
जिंदगी का दस्तूर,असल निभाने की खातिर।
लबों पर हंसी,जेहन में बस सुकून रखता हूँ।।
सुबह हो,शाम हो ये तो बस उसका इख्तियार है।
भला मैं कहाँ इसकी जरा भी फिक्र करता हूँ।।
प्यार और प्यार दुनिया में रहे हर तरफ बस। खुदावंद से महज इतनी मैं दरकार रखता हूँ।।
मुफलिसों का बनके हमदर्द जो उनके आंसू पी सके।
उसे ही उस्ताद दरअसल मैं अपना खुदा चाहता हूँ।।
@नलिन#उस्ताद
Saturday 14 September 2019
पितरों को
पितरों को श्रद्धा-सुमन
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आए हैं पितर दूर से,जरा इनका मान तो कीजिए।
थके-मांदे हैं ये,आप इनका सत्कार तो कीजिए।।
मिलने चले आए हैं ये,प्यार के वशीभूत हो हमसे।
बस भाव के भूखे हैं ये,सो भावांजलि तो दीजिए।।
पाला था इन्होंने हमको,न जाने कितने जतन से।
दिए थे जो संस्कार उनका,थोड़ा तो पालन कीजिए।।
कैसी चल रही जिंदगी आपकी,जानने को हैं उत्सुक बड़े।
दरियादिली दिखा किसी गरीब की,आप भी मदद कीजिए।।
करुणा,दया,मदद का कभी भी,कोई यूँ तो है विकल्प होता नहीं।
सो इनमें ही रूप नारायण,या कि फिर पितर का तलाश लीजिए।।
आज जो भी हैं हम-आप सभी,पितरों के अति पुण्य प्रताप से।
वो ऋण तो है उनका अतारणीय,पर श्रद्धा से स्मरण तो कीजिए।।
भादो की पूनम से लेकर,आश्विन के घोर अमावस सोलह दिनों।
कम से कम किसी एक दिन,पितरों को अपने श्रद्धा से नमन कीजिए।।
@नलिन#तारकेश
Friday 13 September 2019
231-गजल:खैरात हो गई
बाद एक मुद्दत जो उससे मुलाकात हो गई। लो उमस भरी रात चुपचाप बरसात हो गई।।
महकता है हर ख्वाब जागने के बाद भी अब तो।
हकीकत की देखो ये नई गजब शुरुआत हो गई।।
दबी थी दिल में जो दुआ एक जमाने से। कबूल होना ये खुदा की करामात हो गई।।
लगे हैं फूल खिलने बंजर जमीं में हर तरफ। प्यार की बड़ी ये दिलों को सौगात हो गई।। हौंसला दिया जो उस्ताद ने चलने का हमें। कामयाबी तो जैसे सदा को खैरात हो गई।।
@नलिन#उस्ताद