खुले आकाश में इन परिंदों को उड़ने दो।
दम न तुम मगर यूं ख्वाबों का घुटने दो।।
मासूम कलियों को न तोड़ो ए बागवां।
सुर्ख़ फूल बन उन्हें भी तो महकने दो।।
वह साजिशों से संभल गया फिसल कर भी।
तोहमत कम से कम अब तो मढना रहने दो।।
मिलकर लिखनी है हमें इबारत बुलंदियों की अभी।
बहा के खून गलियों में यूँ हौसलों को न मरने दो।।
जहालत,नफरत भरी सियासत की इन्तेहा हो गई।
"उस्ताद"अमनो चैन की रोशनी मुल्क में होने दो।।
@नलिन#उस्ताद
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