लहरा के जुल्फ जो आंचल खोला उसने।
फलक से चांद सितारों को बटोरा उसने।।
दिले दहलीज पर रख महावर लगे पाँवों को।
जन्नत सा हंसी सजा दिया आशियाना उसने।।
रूप-रंग,जात-पात ये तो बेवजह के शगल हैं।
प्यार है क्या शय* प्यार से समझा दिया उसने।*चीज
शबेइंतजार लो हुआ खत्म शबेवस्ल*हो गई।*मिलनरात्रि
देर हुई तो सही पर शबेरोज* सजाया उसने।।*हर वक्त
शफक*ए नूर आंखों से उतरता नहीं अब तो।
*क्षितिज की लाली
चौखट "उस्ताद" की जो सर झुकाया उसने।।
@नलिन #उस्ताद
No comments:
Post a Comment