जो-जो तुमने कहा था वही हम कर रहे।
जाने बदनाम क्यों अब तुमही कर रहे।।
कलम होनी थी जिस हाथ में इल्म* के लिए।*हुनर उसी में संग* ले तुम जंग की तैयारी कर रहे।।*पत्थर
बहस-मुबाहिसा होती हैं रगबत* भरी तहकीक**से।
*प्यार **जाँच-पड़ताल
नासमझ तुम तो गालियों की बस जुगाली कर रहे।।
है आसां नहीं पनघट की राहें सभी जानते।
मगर तुम तो राजनीति हिंसा भरी कर रहे।।
आशियाना जलेगा तो महफ़ूज* कौन होगा कहो तो।*सुरक्षित
ऐसी बात जाने क्यों चिंगारी भड़काने की कर रहे।।
खौफ,आगजनी की बिसातें भड़का के सरेआम।
"उस्ताद" खरी बात तुम मुल्क से गद्दारी कर रहे।।
@नलिन#उस्ताद
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