कट गयी जब यार सबकी ये जिन्दगी जैसे-तैसे।
उम्मीद है फिर कट जाएगी हमारी भी जैसे-तैसे।।
लगाना न तुम यहाँ पर दिमाग कतई यार मेरे।
चलो देखो चल तो रही है न जिंदगी जैसे-तैसे।।
बेकार है सच में उसूल-वसूल की बात सारी।
करिए आप जोड़-तोड़ बेशर्मी भरी जैसे-तैसे।।
आरक्षण की बैसाखी देते रहिए आप जी भरके।
आखिर सरकार आपने भी है चलानी जैसे-तैसे।।
खानी है चैन से अगर आपने हर रोज़ दाल-रोटी।
पी लीजिए बेमन सही घूंट अपमान की जैसे-तैसे।।
होगी इनायत ऑखिर किसी रोज तो मेरे राम की।
बस इसी उम्मीद में रात अपनी कट रही जैसे-तैसे।।
उसने मुझे बहलाया या कह लीजिये कि मैंने उसे।
बहरहाल काट ली "उस्ताद" ये जिंदगी जैसे-तैसे।।
@नलिन#उस्ताद
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