प्रेम है सूक्ष्म,असीमित अति,इसे स्थूल-देह से न नापिए।
ये है परम दिव्य-भाव,इसे आप,सदा हृदय में संजोइए।।
सृष्टि दृढ़-आधार है यही,बस इसे सहज आप स्वीकारिए।
श्वांस डोर बांध इसे,मुक्त गगन नित्य ही,पतंग सा उड़ाइए।
निष्कपट निस्वार्थ होकर सदा,आनंद नित्य ही पाइए।
कभी ना इसे आप अपने,छुद्र-मलिन सांचे में ढालिए।।
विस्तार है अनंत इसका,आप जरा ध्यान से विचारिए।
जड़-चेतन प्रेम से है सराबोर,उस रसधार से नहाइए।।
है यही ब्रह्मांड की परम-शक्ति,सत्य यही बस एक मानिए।
कर्म,बुद्धि,ज्ञान हैं व्यर्थ के बस,सो सदा प्रेम को अपनाए।।
है जीवन प्रेम-उत्सव दीप्तिमान,हर घड़ी को संवारिए।
देह,मन,बुद्धि,आत्मा को,इसकी सुवास से महकाइए।।
सूत्रधार समस्त ब्रह्मांड के,श्री सीतारामजी को जानिए।
आप तो बस प्रेम भाव से,श्रीचरण,भाव अश्रु पखारिए।।
@नलिन#तारकेश
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