हम कभी चुपचाप तो कभी फूटकर रोते हैं।
मगर जाने क्यों लोग तो यहाँ रोने से डरते हैं।।
सारा खारापन निकालते हैं ये अश्क आपका।
तभी तो कभी हम बेवजह भी आँख भरते हैं।।
रोने की रस्म अदायगी दिखती है यहाँ आजकल तो।
मेकअप न बिगड़े गिल्सरीन लगा बस सब देखते हैं।।
सूखे दरिया सी महज़ रेत ही बिखरी है ओर-झोर।
तभी सब लोग यहाँ तो किरकिरी से चुभते रहते हैं।।
दुनियावी ख्वाहिशें रोज़ चक्की सा पीसती आपको।
मगर कभी रूहानी जज्बात भी खूब रुलाते रहते हैं।।
मानो ये न मानो मगर सौ फीसदी ये हकीकत रही।
रूह की पाकीजगी हर बड़े"उस्ताद"इसी से पाते हैं।।
@नलिन#उस्ताद
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