परवाने को अपनी मंजिल मिली थी।
आँखों में उसे एक चिंगारी दिखी थी।।
यूँ ही नहीं उमड़ा है प्यार उसके लिए।
देखते ही दिल में एक बाती जली थी।।
खुले आसमां में डोलते हों जैसे बादल।
उसकी अदा उसे यूँही बिंदास लगी थी।।
हवा में हिचकोले खाती पतंग के जैसे।
बातों से अपनी वो तो पलटती रही थी।।
परिंदों की तरह चहचहाना बात-बेबात।
आदत ये उसको बहुत पुरानी पड़ी थी।।
मुद्दतों"उस्ताद"जज्बात रोके हुए था।
बरसात तो गोया अब ये थमनी नहीं थी।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Friday 18 October 2019
गजल-257:परवाने को
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