जन्नत के ख्वाब हमें वो दिखाने आए हैं। दुनिया की हकीकत से जो बचते आए हैं।।
होते हैं तेरे-मेरे बीच कुछ ऐसे शख्स भी।
हर भले काम जो खलल डालते आए हैं।।
न करो बात नामुराद सियासतदानों की। अंगुलियों पर इन्साफ ये नचाते आए हैं।।गद्दार हैं रहते कुछ हमारे मुल्क के भीतर ही।
दुश्मनों से जो नापाक हाथ मिलाते आए हैं।।
नाजनीनों को हल्के में लेने से बचिए हुजूर।
ये तो अदाओं से जिलाते ओ मारते आए हैं।।
खैरमकदम* किस-किस का कहो करते फिरें हम।*अभिनन्दन
यहां तो सभी खुद को "उस्ताद" बताते आए हैं।।
@नलिन#उस्ताद
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