गोदी में अभी खेलते नहीं परिंदे मेरे।
बाकी हैं प्यार के सबक सीखने मेरे।।
अभी तो चखी नहीं एक घूंट मय की।
लो अभी से हैं मगर पांव बहकते मेरे।।
चल पड़ा हूँ जो उसका दीदारे ख्वाहिश लिए।
हौसला यूं बना कि पाँव नहीं अब थकते मेरे।।
घड़ी की सुईयों का यहाँ भला कौन मुंतज़िर*है।*प्रतिक्षारत
बसे हैं जबसे आँख में लीक से हटे सपने मेरे।।
ये खामखा लगे वर्जिश*किसी को तो लगा करे।*कसरत
बस उसके चरचे ही दिलों के तार हैं छेड़ते मेरे।।
गजल लिख रहा हूँ हर रोज एक नई मैं तो।
"उस्ताद"है अभी जिंदा कलाम यह बताते मेरे।।
@नलिन#उस्ताद
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