गुनगुनाते मस्ती में तुम बढ़ते रहो।
जिंदगी की नाव बस यूं ही खेते रहो।।
धुंध है छाई आजकल आसमान में।
हटाने की इसको जुगत लड़ाते रहो।।
एहसास गुनाहों का याद करना ही होगा।
खुद से नजरें चुराकर अब न बचते रहो।।
नस्लें आने वाली करेंगी कभी न माफ हमको।
सो सबक कुछ भले भी खुद को सिखाते रहो।।
परिंदे,दरख्त,चौपाए सभी हैं खौफजदा हमसे।
हो आदम तो अपनी इंसानियत बचाते रहो।।
क्या हाल-बेहाल कर दिया है कायनात का तुमने।
"उस्ताद" सोचो वरना तो हाथ फिर मलते रहो।।
@नलिन#उस्ताद
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