उमा कहउँ मैं अनुभव अपना।सत हरि भजनु जगत सब सपना।(रामचरितमानस 3/38/5)
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हाथों में पकड़ा दिया सबके एक झुनझुना उसने।
गम और खुशी बीच सबको खूब उलझाया उसने।।
हर कोई दूसरे के हाथ की शय से बस हैरान है।
अपने हाथ मिला क्या देखना ये भुलाया उसने।।
हर बात बच्चों सा रोता और मचलता है आदमी।
छोटी-बड़ी हर बात पर हमें बहुत फरमाया उसने।।
सारी दुनिया खड़ी महज ये झूठ की बुनियाद पर।
बस दिखा चांद का अक्स पानी में बहलाया उसने।।
कोई नहीं तेरा"उस्ताद"कागजी लफ्फाजी है सब।
बेवजह के मकड़जाल बारीकी से फंसाया उसने।।
@नलिन#उस्ताद
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