अपना ही ये जब न हो सका आदमी।
गैर का भला क्या खाक होगा आदमी।।
सितारों में दुनिया बसाने का ख्वाब है पाले हुए।
जमीं में ही ठीक से आता नहीं चलना आदमी।।
हवा,पानी,मिट्टी लो ये जहरीले सभी हो गए।
हद है मगर नहीं अब तलक जागा आदमी।।
यूँ जो ठान कर हौंसले से जब-जब ये चल पड़ा।
नामुमकिन को भी है मुमकिन बनाता आदमी।
भीड़ ही भीड़ है चारों तरफ यूँ तो आजकल।
लीक से हटके भी दिखाता है चलना आदमी।।
शौक तो बड़ा है "उस्ताद" कहलवाने का।
काश पहले थोड़ा ये बन तो जाता आदमी।।
@नलिन#उस्ताद
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