दरख़्त से इतना सीखते तो अच्छा था।
लद जाएं जो फल तो हमें झुकना था।।
आँसू बरसाने में कोताही ना करना।
वरना ये दिल तो अंदर ही घुटना था।।
जाड़ा,गर्मी,बरसात हैं मौसम के नजारे। इनका तो हमें हर-हाल लुत्फ लेना था।।
हर घड़ी की फितरत अलग है जनाब।
तालमेल यहाँ तो बस यही बैठाना था।।
वो बुलन्दियों पर चमके सूरज सा तो क्या।
लकीरों को हाथ की हमें खुद बदलना था।।
सफर में जिन्दगी के जो सुकूं चाहो तुम।
"उस्ताद"के मानिन्द खाली हाथ रहना था।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Tuesday 24 September 2019
गजलः250-खुद बदलना था
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