छूने में आसमां खड़ी नई मुश्किलें हो गईं।
शायद ज्यादा ही नाजायज चाहतें हो गईं।
रात भर सोया नहीं समझाता रहा उनको।
अजीबोगरीब बच्चों की फरमाइशें हो गईं।।
गलत तू भी नहीं गलत वो भी नहीं जरा सा।
अलग एक मंजिल की लेकिन तकरीरें* हो गईं।।अभिव्यक्ति/बयान
बदल रहे जमाने की क्या दुश्वारियाँ*कहें हम।*मुश्किलें
चुनौतियाँ तो हर दिन खड़ी मुँह बाए हो गईं।।
अब तो हर कोई काबिल"उस्ताद"हो रहा।
फलसफा*झाड़ने की फजूल जरूरतें हो गईं।।*तर्क/ज्ञान
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Saturday 21 September 2019
गजल-246:छूने में आसमां
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