श्री गणेश,हे ढूंढिराज अब शीघ्र ही,श्री गणेश कीजिए।
हृदय से मेरे,समग्र कल्मष मिटा,आप निवास कीजिए।।
रिद्धि-सिद्धि सपत्नीक,नित्य लीला-कौतुक कीजिए।
श्रद्धा-विश्वास स्वरूप,मां भवानी और शंभू संग विराजिए।
चंचल मूषक सी मेरी इंद्रियों को,पाश से अपने थामिए।।
हे शूपॆकर्ण,मात्र भक्ति रस की,श्रवण शक्ति दीजिए।
जो भी हो,मलपूणॆ-मायाजनित उसे अवरुद्ध कीजिए।।
ओंकार रूप,अलौकिक अपनी,छवि साक्षात अब कीजिए।
विश्व का,समग्र हो कल्याण,ऐसी चेतना का संचार कीजिए।।
हे चतुर्मुर्ति,भालचंद्र शोभित,मंगलारम्भ श्री चरण अपने कीजिए।
योग्य गण,हम बनें आपके,ऐसा शक्ति- सामथ्यॆ प्रदान कीजिए।।
@नलिन#तारकेश
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