Wednesday 11 September 2019

सृष्टि के प्रारम्भ से ही

सृष्टि के प्रारम्भ से ही,प्रेम तो अत्यन्त पुनीत, जग में रहा।
तेरे-मेरे साथ में,जबसे वो घुला तो,त्रिवेणी बन बहता रहा।।
आशा-निराशा के दो किनारे भी,तबसे एक हो गए।
जबसे हमारा प्यार उसमें,सतत उफन बहता रहा।।
सींच कर हर किसी को,हरा-भरा कर देता है प्यार।
तभी तो जहाँ भी हम बढे,वहाँ न कोई शेष मरुस्थल रहा।।
प्रेम तो है अनमोल-दिव्य,जो अमरत्व को है समेटे हुए।
अपेक्षा-उपेक्षा से भला कहाँ,असल प्यार है मरता रहा।।
छिद्रयुक्त बाँस तुमने,जो अधर पर प्रीत से है रख लिया।
समस्त जड़ ब्रह्मान्ड भी,साकार हो नृत्य करता रहा।।
राधा,मीरा ताल में बाँवरी हो,तब नाचने-गाने लगीं।
ढाई आखर प्यार का,जब मंत्र कान गूँजता रहा।।
भला"तारकेश"भी तारण करें,यहाँ किसी जीव का।
सबका ही तन-मन,प्रीत की लौ जब बिसरता रहा।।
@नलिन#तारकेश

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