गम और खुशी से अछूता दिखाना चाहता है।
वो तो दरअसल मुझे खुदा बनाना चाहता है।।
समझता हूँ मैं उसकी सारी चालाकियाँ।
करना वो अपना उल्लू सीधा चाहता है।। बेतरतीब बिखरे हैं सभी रंग जमाने के।
गमगुसार*बस उन्हें सजाना चाहता है।।*संवेदनशील
यकीनन बड़ा खूबसूरत है कुदरत के साथ रिश्ता।
खुदगर्ज मगर आदमी इसे दोहना चाहता है।।
मट्टी,आकाश,आग,पानी,हवा से बने हैं हम सब।
वो जाने फिर भला क्यों हमें बाँटना चाहता है।।
जिस्म की बात तो होगी चलो जब तक वो साथ है।
"उस्ताद"मगर नब्जे रूह अब टटोलना चाहता है।।
@नलिन#उस्ताद
I am an Astrologer,Amateur Singer,Poet n Writer. Interests are Spirituality, Meditation,Classical Music and Hindi Literature.
Tuesday 17 September 2019
गजल-238: चाहता है
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