Thursday, 30 November 2017

यादे हक =दासोहम्

वह आकाश की बुलंदियों में इतना मशगूल हो गया।
जमीं की बुनियादी हकीकतों से बहुत दूर हो गया।

माना की हम सभी हैं उसी परवरदिगार के अक्स।
लफ्ज़ों से मगर गढ़ना ये अफसाना आसान हो गया।

खुदा के दीदार को बीत जाते हैं न जाने कितने जन्म।
सोचो उससा आफताब भीतर तलाशना क्या मजाक हो गया।

दुनिया में आजकल बड़े नए नुमाइश के फार्मूले इजाद हो रहे।
हर जगह चाहे वो इबादत,फिर सब बाजार हो गया।

अनल हक*कहना यादे हक को कहाॅ जंचता है कहिए जनाब।
सूप बोले तो बोले ये तो छलनी का बोलना हो गया।

"उस्ताद" जब सजदा ना हुआ उस की चौखट पर वफा से।
कैसे भला ये बताओ तुम्हारे लिए वो इतना आम हो गया।

@नलिन #उस्ताद

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