Saturday, 11 November 2017

कूकते फिरती

सहज आनंद में रहूॅ बस,यही एक चाह मेरी
रोम-रोम थिरके मेरा,तान छेड़ूं आशा भरी।
ता थेई,थेई तत् , ता थेई,थेई तत् ,हर घड़ी
कदम रुकें,चलें हर लय ताल सही,हर घड़ी। इंद्रधनुष हो परिधान मेरा, फिरूॅ बन तितली चूम आकाश सुधा रश्मियों संग पेंग भर ली।
मूलाधार से सहस्रार तक समस्त सप्तलोक की
हर दहलीज,आंगन पर उकेर दूॅ महावर पांव की।
बसंत बहार बहती, मृगलोचनी ने खोज ली कस्तूरी अपनी
इस डाल से उस डाल फिर,कूकते फिरती अब अपनी।

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