Sunday, 5 November 2017

संस्कृत उक्तियों से सजी गजल


प्रस्तुत रचना  भी एक नवीन प्रयोग है जिस में संस्कृत की उक्तियों को लेकर के ग़ज़ल लिखी गई है।  इसमें "अति भक्ति चोर लक्षणं" का अर्थ है कि जो लोग ज्यादा प्रेम भाव दिखाते हैं या ज्यादा आपके साथ सेवा करने का नाटक करते हैं वह आप को ठगते हैं। "शठे शाठ्यम "का अर्थ है कि जो नालायक है उसके साथ नालायकी करना ही अच्छा है। :मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना" का अर्थ है व्यक्ति व्यक्ति की सोच अलग-अलग होती है। "अति सर्वत्र वर्जयेत" का अर्थ है कि किसी भी चीज की अति को रोकना चाहिए। "रत्नं रत्नेन संगच्छते"का आशय है कि एक जैसी विचारधारा के लोग एक साथ चलना पसंद करते हैं और "देवं भवेत् देवं यजेत" का अर्थ है कि देवता होकर के देवताओं की पूजा करनी चाहिए।"सत्यम शिवम सुंदरम" एक कल्याणकारी वाक्य है जिससे हम सब सुपरिचित हैं और  "वसुधैव कुटुंबकम" का अर्थ है पूरी पृथ्वी हमारा परिवार है। "संशयात्मा विनश्यति" जिसने संशय किया वह नष्ट हो जाता है।"विश्वास फलति सर्वत्र" यानी कि विश्वास जो है वह हर जगह  काम करता है।"पत्नी मनोरमां देहि" का अर्थ है मन के अनुसार चलने वाली पत्नी हमें मिले, ऐसी भावना और "मधुरेण समापयेत" का अर्थ है मिठास के साथ जिसका अंत हो।
======================

"अति भक्ति चोर लक्षणम्" हमें खूब है सिखाया भला।
सो"शठे शाठ्यम"सबक इन को सिखाना भला।।

"मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना"यह बात जगजाहिर तो है।
"अति सर्वत्र वजॆयेत"पर इसे भी सोच रखना भला।।

"रत्नं रत्नेन संगच्छते"बहुत सच है हमने पढा।
"देवं भवेत् देवं यजेत" तभी जग कहता भला।।

"सत्यम शिवम सुंदरम"भी है नजरिया  कमाल का।
दिखता"वसुधैव कुटुंबकम"में यह सच्चा भला।।

मोर मुकुट वाला कहता हमसे"संशयात्मा विनश्यति"।
अतः"विश्वासं फलति सर्वत्र"है स्वीकारना भला।।

"पत्नीं मनोरमां देहि"गुहार पर"उस्ताद" की।
बोला खुदा "मधुरेण समापयेत"खातिर तेरा सोचा भला।।

@नलिन #उस्ताद

No comments:

Post a Comment