Thursday 16 November 2017

गजल-75: कुछ कह रहे

कुछ कह रहे मरहूम शायरे हस्ती का दीवान  मिल गया।
तो कहते हैं कुछ इसे जज्बाए उनमानो उफान मिल गया।।

दरअसल लिखना पढ़ना मुझसा नादान क्या हिमाकत करता।
वो तो कागज,कलम,इजहारे सिलसिले का  वरदान मिल गया।।

बच्चों के साथ बच्चा और बूढों के साथ बूढा बनकर जो रहा।
जीने का जीवन उसे असल नुस्खा बैठे-बिठाए आसान मिल गया।।

बादल,चांद,सितारे,शबनम,तितली जो भी हैं कायनात में।
लगता है सब दिल को अजीज जो महबूबे
अरमान मिल गया।।

पीना चाहता था मय दुनियावी चाररोजा कभी गुलाबी।
फजले खुदा मौज का सदाबहार दिल ही समाधान मिल गया।।

बड़े दरख़्तों की छांव यूॅ तो पनपने देती नहीं छोटी पौध। 
नाचीज मगर चूमता बुलंदियां जो "उस्ताद"ए सुजान मिल गया।।

@नलिन #उस्ताद

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