Friday, 17 November 2017

म्यान में पड़ी रहने दो शमशीर मेरी

म्यान ही में पड़ी रहने दो शमशीर मेरी तो अच्छा है।
असूल मेरा बुरों के लिए बुरा मगर अच्छों के लिए तो अच्छा है।।

फूलों को खिलने दो बेदाग बिना किसी भेदभाव ए बागवां।
जंगल का कानून तुम्हें न सिखाएं मजलूम तो अच्छा है।

चीखिए,चिल्लाईए या कुछ और आप कीजिए पूरे जोश से।
नक्कारखाने में तूती की आवाज भी अब बुलन्द हो तो अच्छा है।।

रहता जहां भी हो परवरदिगार तुझे है क्या करना भला।
मोहल्ले में तेरे न सोए कोई खाली पेट बस जान ले तो अच्छा है।

सांसों में बहता जहर,आंखों में हैवानियत और दिल में फफूंद।
हालात अभी भी सुधार ले घर के अपने तो अच्छा है।।
 
माना रंगबाजी बहुत है तेरी पैदल दो कदम भी न चलने की।
वर्जिश भी कर ले सेहत को अगर सुबह या शाम तो अच्छा है।।

सहकर अथाह पीड़ाजो जनती,पालती,पोसती तुझे बड़े एहतराम से।
सवाब पर काश तू भी"उस्ताद"उसके सजदा नवाजे तो अच्छा है।।

@नलिन #उस्ताद

No comments:

Post a Comment