Monday 13 November 2017

गजल-74: जूझ कर जो

जूझ कर जो रास्ता खुद का बनाता नहीं है। 
कहलाने का हक उसे आदम सुहाता नहीं है।।

घूम लो चाहे तुम दुनिया-जहां ये सारी।
घर सा सुकून कहीं कोई पाता नहीं है।।
 
लिखने-पढ़ने से हुआ है किसका भला।
खुद से वो जब तक दिल लगाता नहीं है।।

सजदे कर लो चौखट पर तीरथ के जितने।
मां-बाप से बढ़कर कोई दाता नहीं है।।

मददगार हैं सभी के यूं कोई ना कोई।
हमदर्द मगर पड़ोसी सा नाता नहीं है।।

नजरों से जमके जब से पीने लगा हूं नशा।
साकिया पास जाने का गम सताता नहीं है।।

कहने को है अच्छा नेकी करो,बदी ना करो। 
यूं गलत-सही सा कुछ जमाखाता नहीं है।।

तराशता है शागिर्द को अपने से बढकर जो।
"उस्ताद" सा विरला कोई नजर आता नहीं है।।

@नलिन #उस्ताद

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