Wednesday, 1 November 2017

कत्ल में साजिश हो रही

तंगहाली पहनना चीथड़े मजबूरी रही उसकी
ब्रांडेड तन उधेडू कपड़ो में अमीरी रही उसकी।

पतलून कसी हो अगर इज़ारबंद क्या चाहिए कहो
है खुद को दिखाना आईना फ़ितरत रही उसकी।

ख़्वाब का भी ख़्वाब हो हकीकत पर जब भारी
मुर्दों सी  साँस भरना मजबूरी  रही उसकी।

मिठास बहुत घोली हाव-भाव,जुबां और आँख में
मगर डीएनए साफ़ गद्दारी झलकती रही उसकी।

सजदा जो न कर सके क़ौमी तराने पर कुछ देर को
मादरे वतन पर सोच बहुत काली रही उसकी।

"उस्ताद"हाथ उसके निवाला कहाँ पचा पाओगे तुम
जाने किस किस के क़त्ल में साज़िश रही उसकी। 

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