Wednesday, 17 September 2014

मेरा पहला काव्य संग्रह






राम जी की असीम  अनुकम्पा से आ रही नवरात्रियों में  "मानस  सुधा मंजरी"  और   "साईं कृपा याचना" इन  दो पुस्तकों का प्रकाशित रूप में सामने आने का सपना साकार  होने जा रहा है। फिलहाल आज थोड़ी चर्चा आपके साथ "साईं कृपा याचना "पर करने के लिए उत्सुक  हूँ।

पुस्तक को जो यह नाम दिया उसके पीछे इस पुस्तक में संगृहित अधिकांश रचनाओं में साईं से याचना, कारण बनी है।याचना में  यद्यपि  मैं/ मेरा शब्दों का भी प्रयोग हुआ है पर वो सम्रगता, सामूहिकता ही के भाव से है। यहाँ मुख्यतःयाचना यही है कि हमें जो मानवीय देह मिली है उसे हम सुकारथ कर ले जाएं तो हमारा जन्म लेना सफल हो जाए। "सोइ पावन सोइ सुभग सरीरा । जो तनु पाइ भजिअ रघुबीरा ।। 7/95/2"

दूसरी बात कि हम जब भयंकर दर्द में, पीड़ा में होते हैं तो बस चिल्लाते/ चीखते हैं। उस समय सुन्दर वाक्यों में अपने को अभिव्यक्त करने का धैर्य कहाँ होता है? हमारी बात चिकित्सक सुन ले, समझ ले और इतना नहीं तो कम से कम नजदीक या दूर से करुणापूर्ण दृष्टि से देख ही ले, यही हमारा ध्येय होता है। फिर वो संवेदनशील हुआ तो खुद ही हर जतन करेगा। फिर यहाँ तो बात साईं से निवेदन की है जो "करालं महाकाल कालं कृपालं" हैं। उससे कुछ छुपा नहीं है, वो हर पल सबसे करीब रहता है और हमारे उत्थान के लिए ही मानो अपना अस्तित्व रखता है। हाँ बस उसे कुछ नाटक की, मसखरी की आदत है इसलिए कभी सुनी - अनसुनी  करता है। पर ऐसा है क्या ? खैर अब जब वो करता है तो हम क्यों पीछे रहें ! हम तो उसका अंश ही हैं। वैसे भी आजकल के बच्चे बाप के कान काटते हैं सो कुछ ऐसा ही अभिनय करते हुए उलटी - सीधी, भाव - कुभाव से याचना उसको समर्पित है।


 अब जब ये उसके लिए है तो आपके लिए भी है। क्योंकि एक कान से दूसरे कान जाते - जाते शब्द साईं का ही तो स्वरूप बनाते हैं। इसलिए मेरे इस दर्द में आपकी भी आर्त पुकार है और आपको प्राप्त हो रहा राहत, सुकून का एहसास मेरा भी इलाज है। इसी भावना से यह संकलन सादर समर्पित है परमात्मा के विविध रूपों को।


दोनों ही पुस्तकों को प्रकाशित करने की इच्छा विशेष नहीं थी पर मेरे कार्यालय सहयोगी, अवधी के कवि श्रीराजेश शुक्ला छन्दक जी के बार-बार प्रेरित करने और उस हेतु साथ में भाग-दौड़ करने से यह  संभव हो सका। उनका मैं ह्रदय से आभारी हूँ। इसके साथ ही श्री नीरज  ने इस पुस्तक की कम्पोजिंग और टाइपिंग में सहयोग दिया और श्री राज भाई ने "साईं कृपा याचना" पुस्तक का मनोहारी कवर डिज़ायन करने में सहयोग दिया उनका भी आभार अभिव्यक्त करता हूँ। सुश्री पूर्विका (भतीजी) ने कई बार प्रूफ रीडिंग हेतु जो मेहनत की उसके लिए उसे मेरा स्नेह और आशीर्वाद। जय साईं राम। 


1 comment:

  1. मुझे पूरा विश्वास है की यह पुस्तक हमारे समाज को एक नई दिशा देगी ! सुधी पाठक इस पुस्तक को अपने अंतःस्थल में उतार कर अपने इर्द गिर्द इसके प्रकाशपुंज को फैलाएंगे ! जय साईराम !!!

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