Monday, 15 September 2014

223 - गुरु की महिमा





गुरु की महिमा गुरु ही जाने
कौन भला इस भेद को जाने।

जीवन सरिता बहती जाए
गुरु ही केवल पार लगाए।

संसय-भंवर सदा डराए
श्रद्धा,सबर बस गुरु दिलाए।

हाथ पकड़ कर गुरु चलाए
फिर काहे को मन घबराए।

1 comment:

  1. सच कहा आप ने बिना गुरु ज्ञान के हमारे सारे प्रयास अधूरे रह जाते हैं.

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