Monday, 1 September 2014

209- ताहि भजहि मन तजि कुटिलाई।




ताहि भजहि मन तजि कुटिलाई।
राम भजे गति केहि नहिं पाई।।     उत्तरकाण्ड 129/8


राम का नाम,बस यही एक नाम
दिन रात,हर घडी-पल,सुबह-शाम।
राग-द्वेष,छल-कपट का छोड़ जंजाल
हृदय बना तू अपना,निर्मल और विशाल।
जप ले मन तू छोड़ लौकिक सब आस
राम करेंगे क्यों न तेरे उर भला वास।
नाम का राम के बड़ा यही चमत्कार
जीव ले भूल से भी,हो जाए बेडा पार। 

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