Tuesday, 2 September 2014

210 - एहि कलिकाल न साधन दूजा।



एहि कलिकाल न साधन दूजा।
जोग जग्य तप व्रत पूजा।।          उत्तरकाण्ड 129/5


उचार लो तुम बस हरी का नाम
जैसे भी हो हर पल सुबह-शाम।
इस कलिकाल में कहाँ भला
वर्ना मिले तुम्हें जरा विश्राम।
जप-तप-पूजा और ध्यान-धारणा
इस युग कहाँ बनाए जरा भी काम।
एक आधार बस यही राम का नाम
धर्म,अर्थ,काम,मोक्ष का सुन्दर धाम।  

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