Sunday, 14 September 2014

222 - तुम मुझे जो



तुम मुझे जो इतने प्यारे लगते हो
रूप से,व्यक्तित्व से मंत्रमुग्ध करते हो
हर पल,हर छन दृष्टि में बने रहते हो
कण-कण में अमृत रस सा झरते हो
साईं कहो ये कमाल कैसे कर लेते हो।


सच यही की तुम हर जगह रहते हो
हर रूप में छुपे कहीं तुम ही होते हो
फिर भला हमें कैसे भुला सकते हो
ये नाटक का अंत क्यों नहीं करते हो
मुझे भी दिव्य दृष्टि संपन्न करते हो।   

1 comment:

  1. तन में मन में साईं आप ही समाये हो तो फिर चिंता किस बात की!

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