Thursday, 1 August 2024

663: Gazal: कुछ निगाहें बोलती ही लगती हैं

कुछ निगाहें बोलती ही लगती हैं।
बन्द हों तो भी देखती लगती हैं।।
इतना घूम रहे हैं आजकल हम।
सारी सड़कें एक सी दिखती हैं।।
मंजिलें जुदा हैं हर बार के सफर में।
फ़ज़ल से खुदा के सुहानी मिलती हैं।।
इज़हार किया तो है कई बार हमने।
किस्मत कहां मगर जरा सुनती है।।
एक छोर से दूसरे छोर तक उस्ताद।
हर जगह तेरी ही याद बनी रहती है।।

नलिन "उस्ताद" 

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