Sunday, 4 August 2024

६६४: ग़ज़ल: चाहते ना चाहते भी करते हैं लोग तारीफ मगर

चाहते ना चाहते भी करते हैं लोग तारीफ मगर।
सुनाते रहते हैं हम भी उन्हें अपनी ग़ज़ल मगर।।

ये दुनिया रखती है बहुत गणित लगा अपने कदम।
नादान हम भूलकर चुनते हैं बार-बार गलत डगर।।

किसी के मिजाज को पढ़ने में आता है बड़ा मजा।
सुधर जाते हम,जो खुद को फुर्सत में पढ़ते अगर।।

तुझसे बिछड़ कर ऐसा लगता है हमारा वजूद नहीं। 
पाते तुझे हम हर जगह देखते जो दिल में डूबकर।।

नादानी में या जानबूझकर अब जब आ ही गये हो।
भीगने से डर रहे क्यों "उस्ताद" दरिया में उतरकर।।

नलिन "उस्ताद" 

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