Tuesday, 13 August 2024

६७२: ग़ज़ल : सोचता हूं ये दिल लगाना कैसे छोड़ दूं

सोचता हूं ये दिल लगाना कैसे छोड़ दूं।
मगर हो सामने तो देखना कैसे छोड़ दूं।।

हर बार खुद को बहुत समझाया है मैंने। 
बन गई है जो आदत बता कैसे छोड़ दूं।।

पहलू में उसके बैठना किसको है गवारा नहीं।
सो तिलस्मी उसकी दुनिया भला कैसे छोड़ दूं।।

बला की है उसमें कशिश सच कहा तुमने। 
थक हार उसके पहलू बैठना कैसे छोड़ दूं।।

"उस्ताद" भी जब हो गया है मुरीद उसका। 
फेसबुक,इंस्टाग्राम का पीछा कैसे छोड़ दूं।।  

नलिन "उस्ताद" 

4 comments:

  1. Wah ustad 👍..kavita gazab h or uspe photo or b gazab👍👍👍

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  2. Thank you for your lovely comments 💖

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