Friday, 29 September 2023

596: ग़ज़ल: वो मुझे चाहता है

वो मुझे चाहता है ये तो पक्का पता है।
जाने इजहार क्यों मुझसे नहीं करता है।।

जो पूछता हूँ उससे हिम्मत करके मैं कभी। 
वो अनसुना कर बातों का सिला बदलता है।।

जरूर हुआ है कोई मुझसे ही बड़ा गुनाह।
यूँ उसे हर कोई बड़ा नरम दिल कहता है।। 

बस ख्यालों में अपने डूबे रहना,मुझे बड़बड़ाने देना।
ये कहाँ कुछ अपनी तरफ से एक लफ्ज बोलता है।।

मेरा होकर भी मेरा भला अब तक जाने क्यों नहीं हुआ।
क्या उसे नहीं गुमान इस सबसे दिले "उस्ताद" टूटता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

Thursday, 28 September 2023

597: ग़ज़ल: इसे सबसे छिपाना चाहिए

मरने का कोई न कोई तो बहाना चाहिए।
मुझे तेरे प्यार का तभी तो ठिकाना चाहिए।। 

रोशन होने लगी तेरे ख्याल से जब मेरी जिंदगी।
किसी गैर को भला फिर क्यों रिझाना चाहिए।।

जो मिले जाए किसी को साथ तेरा किस्मत से। 
उसको तो हर हाल बेखौफ हो इतराना चाहिए।।

गम और खुशी तो आनी-जानी है रोजमर्रा में। 
इन वजहों से भला क्यों उसे भुलाना चाहिए।।
 
नजर लगाते हैं जमाने वाले प्यार पर हरेक के।
"उस्ताद" तभी तो इसे सबसे छुपाना चाहिए।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 25 September 2023

595: ग़ज़ल: दहलीज पार कर न सका

नब्ज़ को टटोला,जब उसकी चारागर ने,हाथ लगा।
बंद थी वो तो मगर,दिल नाम लेकर,था धड़क रहा।।

मासूम चेहरा बनाकर,रंग-बिरंगे जज्बात सजा लिए।
महफिल को उसने ऐसे,दो घड़ी सरेआम लूट लिया।।

आईने ही आईने आशियाने में,उसके लगे हैं चारों तरफ।
सब देखते हैं अक्स अपना,खुद को पर है उसने छुपाया।।
  
नीले गगन में टिमटिमाते तारे,बेतकल्लुफ बतियाते दिखे। जमीं पर मगर कोई भी,पार दहलीज अपनी न कर सका। 

"उस्ताद" तुम तो लिख सकते हो कुछ भी,किसी पर भी। 
ये इख्तियार-ए-हुनर तो तुमको मलिक ने है अता किया।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Sunday, 24 September 2023

594: ग़ज़ल: यायावर चलिए

ज्यादा मगजमारी,बारीकियों पर न कीजिए।
जब तक सुकून मिले,तब तलक मौज करिए।।

आसान नहीं रही,जिंदगी की राहें कभी भी।
लबों पर किसी जुगत,हंसी बचाकर रखिए।। 

अपना कहते हैं,मानते हैं अगर किसी को।
उनसे तो दिल खोल कर,बतिया लीजिए।।

सावन नहीं बरसे बादल तो,मुरझाइए जरा भी नहीं। 
परवरदिगार की नेमत पर हर-हाल,भरोसा पालिए।।

"उस्ताद" चलते हैं,जानिब-ए-मंज़िल सब अकेले ही। 
मिले कोई हमसफ़र तो ठीक,वरना यायावर चलिए।।

नलिनतारकेश@उस्ताद
SKETCH BY "SIDHARTH" MY DEAR BHATIJA

Saturday, 23 September 2023

593: राधा अष्टमी नन्दा अष्टमी की हार्दिक बधाई

राधा अष्टमी एवं नन्दा अष्टमी की बहुत बहुत बधाई। 
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पदचाप से जो नूपुर छनछनाते हैं लाड़ली ज्यू के।
भक्ति सौभाग्य द्वार वो खोलते हैं लाड़ली ज्यू के।।

कृष्ण-कृष्ण रटते तो सभी भक्त सुबह शाम मगर।
बगैर अनुशंसा कृपा कहाँ करते हैं लाड़ली ज्यू के।।

हंसी-ठिठोली कितनी भी करते हों बात-बात पर चाहे।
रूठ जाएं तो त्वरित श्रीचरण दबाते हैं लाडली ज्यू के।।

राधारानी हैं हमारी तो बड़ी कोमल,माखन-मिश्री जैसी। 
तभी कृष्ण,षटरस लुभाते कहाँ,आगे हैं लाडली ज्यू के।।

राधा जी हैं धारा,वस्तुतः निर्मल भक्ति की साक्षात प्रतिमूर्ति। 
"उस्ताद" तभी कान्हा,रीझ भक्तों पर जाते,हैं लाड़ली ज्यू के।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 22 September 2023

592:ग़ज़ल: ईनाम कर दूं

चलो एक ग़ज़ल और तेरे नाम कर दूं।
अब ये इश्क मैं अपना सरेआम कर दूं।।

कड़ी धूप है जमीन रेत भी खूब तप रही।
तू चले साथ तो दिन को भी शाम कर दूं।।

ये पस-ए-मंजर* हुआ खूबसूरत तेरे वजूद से।*पृष्ठभूमि
गजब की तेरी इस जीनत* को सलाम कर दूं।।*शोभा

तेरे दर पर आया हूँ पूरे होश-ओ-हवास से यारब।
जो एक इशारा करे तो खुद को गुमनाम कर दूं।।

तू जो मेरा होकर मुझे हर गम से निजात दे रहा।
बता "उस्ताद" इस पर अता क्या ईनाम कर दूं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 21 September 2023

591: ग़ज़ल:गोल दुनिया

दर्द हद से बढ़ा तो तबीयत खराब हो गई।
शुक्र है पर इस बहाने दवा शराब हो गई।।

जो इश्क परवान चढ़ा तो जरा कयामत देखिए।
लचकती टहनी पर वो लाल सुर्ख गुलाब हो गई।।

इश्क में फेंका जो कंकर यार ने छेड़ने की खातिर।
हंसी लबों पे उसके खिलखिलाती तालाब हो गई।।

मिलेंगे मुहब्बत में कभी तो हम चाहे हो रहे जुदा आज।
बात ये दर्ज गोल दुनिया बतौर हिसाब-किताब हो गई।। 

डूबे जो बस उसके ही एक रंग में तो "उस्ताद" ये हुआ। 
हकीकत जो लगती थी जिंदगी वो महज ख्वाब हो गई।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Wednesday, 20 September 2023

590: ग़ज़ल: जड़ों को जमीं से

सारे दुनिया के लिए,नेकी मुहब्बत का भाव रखता है।
उसके चेहरे से,यूँ ही नहीं माशाल्लाह,नूर टपकता है।।

लोग कोशिश में लगे हैं,उसका उसका कद नापने की।
पर भला उसका ओर-छोर,किसी को कहाँ दिखता है।। 

जुगनुओं की फौज,अब सूरज पर धावा बोलेगी।
बस यही सोचकर,सारा जहां पुरजोर हंसता है।।

जद्दोजहद कर लो,नहीं बोलना है तो नहीं बोलेगा। 
हां जब खोलेगा लब कभी तो,बस वही बोलता है।।

रिसालों-किताबों को,जितना जज़्ब कर रहे नए बच्चे।
तौबा-तौबा कसम से,ये दिमाग और शातिर चलता है।।

शागिर्द चाहे कितनी भी ऊंचाइयों को छू ले मगर।
जड़ों को पुख्ता,जमीं पर तो "उस्ताद" ही करता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Tuesday, 19 September 2023

589::ग़ज़ल :लिखवाता तो ईश्वर था।

घर से दूर गया तो भीतर छुपा बड़ा एक डर था।
जहे नसीब देखिए मेरा वहाँ भी अपना घर था।।

कदम ठिठकते हैं नए सफर पर अक्सर हमारे।
चला तो जगह-जगह मिला मील का पत्थर था।।
 
बेकरारी थी जो जिंदगी में कुछ नए रंग भरने की।
मेरे ख्वाबों को हकीकत में बदलता वो सफर था।।

कुछ भी तो नहीं किया शोहरत पाने की खातिर।
ये सब महज इबादत और दुआओं का असर था।।

आसां होता नहीं है तकदीर को बदलना कभी भी।
जो बदला अगर तो बस एक जुनून और जिगर था।।

बगैर पढ़े-समझे ककहरा जो कुछ हूँ लिख सका।
कलम बनाकर "उस्ताद" लिखवाता तो ईश्वर था।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Monday, 18 September 2023

588:ग़ज़ल: निभाओगे

वायदे  करके भी जो नहीं आओगे।
भला कैसे साथ तुम निभाओगे।।

घड़ी की सुईयां भी थक गईं इंतजार से।
कहो क्या वक्त को भी दोषी ठहराओगे।।

गुलशन,समंदर,फलक और ये तारे सभी।
कुदरत परेशां है क्या तुम सुधर पाओगे।।

हर कदम झूठ,फरेब और बेईमानी।
खुदा का भी खौफ अब न खाओगे?

धड़कनें तेज कदमताल कर रही हैं "उस्ताद"।
हम पर ना सही इन पर तो रहम बरसाओगे।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 17 September 2023

587: ग़ज़ल: दिल को बहलाते हैं

भला कैसे कहें हम तुझे चाहते हैं। 
यहाँ जिसे देखो सब तेरे दीवाने हैं।।

पतंग जैसे उड़ाते दिख रहे नीले आसमान में।
तुझे लेकर हर कोई ख्याली पुलाव पकाते हैं।।

आंखों की कोर में नूरानी चमक आती है।
जब तुझे तेरा नाम लेकर यारब बुलाते हैं।।

सावन भादो बीत गए कोरे तो क्या ?
तेरे किस्से हमें आज भी रुलाते हैं।।

हर शख्स में देखकर बस तेरी तस्वीर।
दिल को यूँ हम उस्ताद बहलाते हैं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 16 September 2023

586:ग़ज़ल: मीठी रसीली जिन्दगी

मीठी,रसीली,जायकेदार कब तलक चलेगी जिंदगी।
कभी तीखी,चटपटी,छौंकी,भुनी तो रहेगी जिंदगी।।

आँखों में लगा ग्लिसरीन देखिए गम जताने आ गए हैं। अजब-गजब ये हमें किस मोड़ पर ले जा रही जिंदगी।। 

कुछ ज्यादा ही पढ़ लिखकर हम सुख़नफ़हम हो गए।
बगैर खाली ज़ेहन मगर कहाँ कुछ सिखाती जिंदगी।।

यूँ तो उसने खूब सराहा और दाद दी मेरी हर ग़ज़ल पर।
समझ उसे आई गहराई से भीतर,जब वो घटी जिन्दगी।।

अब भला कहो क्या चर्चा करे नाचीज "उस्ताद" उसकी। 
खुद ही बनाता,खुद ही बिगाड़ता,है जो सबकी जिंदगी।।  

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 14 September 2023

585: ग़ज़ल: मेरे आशियाने में

खिले तो बहुत फूल,छोटे से इस आशियाँ में मेरे।

जब आओगे मगर तुम बहार तो हम तभी मानेंगे।।


ये शहर सच कहूँ कतई रास आ नहीं रहा अब मुझे।

सोचता हूँ जाकर फिर से बस जाऊं पहाड़ में अपने।।


माना बड़ी तेजी से गाँवों को निगलते ही जा रहे शहर।

अभी भी लेकिन कुदरत भरती यहाँ ताजा हवा फेफड़े।।


वो चाहता है जितना तुझे उतना और कौन चाहेगा।

रहता जो दिल में बेकार ढूंढ रहा उसे तू बुतखाने में।।


मोबाइल तो छूटेगा नहीं कसम से आपके हाथ से हुजूर।

चलिए फिर एक सेल्फी ही मेहमाननवाज़ी में ले लीजिये।।


कम से कम "उस्ताद" इतनी तो तहजीब बनाए रखिए।

बगैर मुंह बनाए कीजिए अपनों के संग में दो बात हंसते।।


नलिनतारकेश@उस्ताद

Wednesday, 13 September 2023

584: ग़ज़ल: हम नहीं निभा पायेंगे

पुरसाहाल लेंगे नहीं कभी वो,भूल के भी बरसो में।
हां मिलेंगे महफिल में जैसे,बगैर मिले मर ही जाते।।

नए जमाने के शउर तो,तौबा-तौबा गले उतरते नहीं।
काम जब पड़ेगा तो,श्रीमान गले आपके पड़ जाएंगे।।

तुरपन करके,जैसे-तैसे चलाते थे काम,पहन फटी नेकर। अब तो मियां बाजार में बिक रहे,क्या खूब ब्रांडेड चिथड़े।

वक्त का ऊंट बेहयायी से बदलेगा करवट,किसे गुमाँ था।
नाते-रिश्ते कौन पूछे,मरे तो हेल्पलाइन से अर्थी उठाएंगे।।

तन्हा रहना ही हमें रास आता,सच कहते खुदा कसम।
ये दुनियावी चोंचले तो "उस्ताद" हम नहीं निभा पायेंगे।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

 

Tuesday, 12 September 2023

583:ग़ज़ल: जाने क्यों इतने चिढ़े हैं लोग

जाने क्यों इतनी चिढ़े हुए,परेशान हैं ये लोग। 
शायद अपनी ज़मीं दरकने से रूठ रहे लोग।।

लाख कोशिश कर तो रहे धूल चटाने की उसे। 
मगर अजब हर बार खुद शिकस्त खाते लोग।।

वो निखरता जा रहा हर बार वार से हीरे के मानिंद।
दुनिया सलाम कर रही पर खफा हैं कुछ चुने लोग।।

कुछ खामियां निकाल वो लेंगे जरूर जो पंचायत पे आए। बुलंदियों का ग्राफ मगर सामने-सामने नकारेंगे कैसे लोग।।

धीरे ही सही रंग तो ला रही है मेहनत उसकी "उस्ताद"। 
वरना तुम ही कहो बेवजह कहाँ किसी को हैं पूजते लोग।।

नलिनतारकेश@उस्ताद 

Monday, 11 September 2023

582: ग़ज़ल :साथ सफर का

कुछ खामियां तुझमें हैं और कुछ मुझमें ज्यादा।
रास्ता तो हमें ढूंढना होगा मगर साथ सफर का।।

भूला दिया हो चाहे तूने मुझको मेरे हमसफर।
प्यार मैंने किया था तो कहाँ तुझे भुलाना था।।

आसमान ने बाहों में,जो भर लिया घनी बदली को।
रात भर जाम पर जाम का,बनता तो था छलकना।।

सुरमई हुई शाम,महक सौंधी-सौंधी सी जो उठी।
चांद भी लजाकर जाने कहाँ,चुपचाप चला गया।।

ये कुदरत भी पल में तोला,पल में माशा बदलती रंग है।
दिन तक "उस्ताद" उमस थी रात पर पारा ढुलक गया।।

नलिनतारकेश 

581: ग़ज़ल: उस्ताद मोती उगलता है

शेर आज एक भी नहीं लिख पाऊंगा लगता है।
ये बरसात का बादल जो मुझे लेकर बरसता है।।

बिजली कड़क रही थी रात कितनी तौबा-तौबा। 
उससे दूर होकर यह दिल अभी भी धड़कता है।।

घुटनों-घुटनों पानी में भी चलकर जिसके दर पहुंचा।
रस्मे-उल्फ़त को अब वही सरेआम रुसवा करता है।।

चिराग को बुझाने आँधियों ने मिलकर साजिश रची। 
मेहरबान पर जिस पर हो खुदा वो कहाँ बुझता है।।

झुर्रियाँ चेहरे पर बढ़ती जा रहीं हैं सीप के मानिंद।
देखना है क्या अब "उस्ताद" भी मोती उगलता है।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Sunday, 10 September 2023

580: ग़ज़ल:दरख़्त अब न काटना

उदास ग़ज़ल की झील पर पांव लटका कर जो बैठा। 
मेरी तन्हाई का गम सारा पलभर में छूमंतर हो गया।।

जाने क्यों लोग डरते हैं जरा-जरा सी दर्द,तकलीफ से।
जरूर कुछ देर होगी मगर उसका मजा अलहदा होगा।।

ये चांद के करीब जाकर क्यों उसे तू बदसूरत कह रहा।
बेगैरत तूने कभी इश्क सच्चा नहीं महज ढोंग ही रचा।।

उजालों का मुसाफिर जो खुद को कहे तू बड़े गुरूर से। 
जरा कभी अपने भीतर चिराग एक जला के देख लेता।।

हवाओं की जुल्फों से जो अहसासे खुशबू भीतर भर रहा।
कसम"उस्ताद"तुझे उसी की,दरख्त अब और न काटना।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Saturday, 9 September 2023

579:ग़ज़ल:दिल के जज्बात

दिल के जज्बात न कहो तुम किसी से चलो हमने माना।
उठते सैलाब को साफ़गोई से खुद को तो सुनाओ यारा।।

परेशानी का सबब तुम्हारी हमें मालूम है सब जाना।
बेवजह देने तसल्ली भला फिर क्यों सुनाते हो गाना।।

मंझधार में जानबूझकर ले गए थे क्यों कश्ती अपनी।
साहिल पर कभी तुम्हें आया नहीं जब चप्पू चलाना।।

आँधियों को तो तलाश रहती है अक्सर ऐसे मौकों की। फकत कहने पर दूसरों के क्यों घर अपना जला डाला।।

यूँ तो इस शहर में हर कोई भीतर से बहुत उदास,तन्हा है।
बस इसी इम्तिहाँ से तुम्हें सीखना है उस्ताद उबर पाना।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Friday, 8 September 2023

578: ग़ज़ल: उस्ताद भीग जाते शहर में

हुई बरसात जो आज बेवजह तेरे शहर में।
सराबोर हो गया हूँ मैं यहाँ अपने शहर में।।

बादलों को भी भाता,आंख-मिचौली का खेल है।
हैरान हूँ जब दिखते कहीं,तब हैं बरसते शहर में।।

मोर,दादुर,पपीहा जो झूमें मिला के ताल सारे।
अब कहो कहाँ कोई हैं दिखते ये मेरे शहर में।।

हर बौछार की हरेक बूंद में कशिश है गजब की।
जो देखो भीग के अगर तो डूब जाओगे शहर में।।

एक कतरा भी बरसे जो कहीं किसी एक कोने।
"उस्ताद" एक हम ही हैं जो भीग जाते शहर में।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Thursday, 7 September 2023

राधा-राधा

कृष्ण को पाने जो कोई बन जाए राधा।
दुख कष्ट फिर मिट जाए उसका सारा।।

राधा ही है नेपथ्य कृष्ण की शक्ति दाता।
पुण्य प्रताप से जिसके बहे कृपा धारा।।

प्यार ऐसा बरसाती बरसाने की राधा।
भगवान बन जाए भक्त उसका आला।।

सागर मिलने नदी से व्यग्र जैसे होता।
नदी भी करती समर्पण अपना सारा।।

यूँ भी कहिए तो कहाँ भेद कृष्ण-राधा।
जो भी समझा वहीं असल राज जाना।।
 
जीवन में उसको दबोचे कैसे फिर माया।
नाम ले जो भी ता-उम्र कहता राधा-राधा।।

नलिनतारकेश

जन्माष्टमी की बधाई

ले लूं बलैया ओ नटखट मोरे कान्हा।
बिना बताएं चुराया दिल तूने कान्हा।।

मैं क्या जानता तुझे,कहाँ ज्ञान अपार।
मगर तेरी चितवन का,हुआ ये कमाल।।

हो गया हूँ मैं तेरी छाया जाने कैसे कान्हा।।

अधर की रसीली मुस्कान का चला ऐसा वार। 
सहज ही हो गया तेरी बांकी अदा का शिकार।।

गीत गाता हूँ तेरे जो तृप्त करते हैं मुझे कान्हा।।

क्या कहूँ कैसे कहूँ बिन तेरे नहीं होता गुजारा यार।
लगा के गले अब मुझे भवसागर से करा दे तू पार।।

 तेरी शरण की गुजारिश बस है अब मुझे कान्हा।।

नलिनतारकेश

Tuesday, 5 September 2023

577:ग़ज़ल: कन्हैया तेरी जयजयकार

तेरे मयखाने से बस एक घूंट की है मुझे दरकार कन्हैया।
रहम कर जरा मुझ पर बस यही है तुझसे गुहार कन्हैया।।

छके-छके से लोग देखता हूँ दर पे लड़खड़ाते हुए जब। 
सोचता कितनी मस्ती होगी प्यालों में दिलदार कन्हैया।।

एक बार,बस एक बार दीदार हों,लड़ें निगाहें तेरी-मेरी।
हो जाएगी ये टूटी कश्ती भी भवसागर से पार कन्हैया।। 

ज़र्रे-ज़र्रे पर तेरी बांसुरी ही तो गमक के साथ है महके। सुना दे कभी तो ख्वाब या हकीकत,हूँ बेकरार कन्हैया।।

राधा,मीरा,रसखान,सूर जाने कितनों को बनाया है अपना। 
"उस्ताद"थामे कलेजा खड़ा,बांध दे गन्डा सरकार कन्हैया।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Monday, 4 September 2023

576:ग़ज़ल:चुम्बन को आती

दर्द तो खुदा की हम पर बड़ी नेमत है।
जो सिखाती है हमें उसकी इबादत है।।

कदम दर कदम बढ़ाने से मंजिल बढ़ रही।
कतई डरना नहीं यही असली जियारत* है।।*तीर्थयात्रा

हम यहाँ हैरां-परेशां हैं,और आप बस खामोश हैं। 
जनाब खोल सिले लब कहिए तो सब खैरियत है।।

यूँ तो बस चुपचाप सहती है जुल्म पर जुल्म हमारे।
हां हद पार हो तो सब हेकड़ी निकालती कुदरत है।।

तहम्मुल* का दायरा बढ़ाने को फकत "उस्ताद"।*सहनशीलता 
रुखसार पर आपके चुंबन को आती मुसीबत है।।


नलिनतारकेश@उस्ताद 

575: ग़ज़ल:उस्ताद जी डूब जाते हैं

महकते हैं फूल तो उनके साथ कांटे भी होते हैं।
इश्क करते हैं जब तो क्यों नहीं हम ये सोचते हैं।।

चांद रुपहला,संगमरमरी दिख रहा हो कितना भी चाहे। हकीकत में धीरे-धीरे ही सही ओझल तो होगा जानते हैं।। 

जो बदलोगे नहीं फितरत तो क्या सब ठहर जाएगा।
वक्त के कदम कहाँ किसी के भी रोकने से ठहरते हैं।।

दूर कहीं अंधेरी सुरंग से दिख रहा है टिमटिमाता दिया।
चलो काफी है सुकूं इतना आगे बढ़कर सफर करते हैं।।

ये जिंदगी की नाव को खेना आसान कहाँ है।
साहिल पे आकर भी "उस्ताद" जी डूब जाते हैं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Sunday, 3 September 2023

574 : ग़ज़ल: धुआं धुआं सी

देखो तो यहाँ ना तुम हो ना हम हैं।
मगर फिर भी ना जाने क्यों गम हैं।।

ये कैसी बस्ती बसाई खुदा ने कहो तो।
ख्वाब,हकीकत सभी तो यहाँ भरम हैं।।

हर कोई तो घाव छूकर बस झंझोड़ता।
भला कहाँ लगाते यहाँ कोई मरहम हैं।।

किस पर करें यकीं इस सफर में हम।
बदलते सबके ही मिजाज़े मौसम हैं।।

धुआं-धुआं सी देख बिखरती जिंदगी।
गम भुलाने पीते "उस्ताद" चिलम हैं।।

नलिनतारकेश@उस्ताद

Saturday, 2 September 2023

573: ग़ज़ल: हवस हो गई है

हवस हो गई है केवल देह,दौलत,शोहरत की।
आरामतलबी है छाई कौन सोचे मेहनत की।।

अकेला चना भाड़ भी फोड़ लेगा चलो माना हमने।
महफिल सजेगी सुरमई जो बही बयार संगत की।।

चल पड़ा है सबको मोहब्बत की राह दिखाने के लिए।
नफ़रत के शहर में दाद तो देनी ही पड़ेगी हिम्मत की।।

ख्वाब देखना है जरूरी मुस्तकबिल संवारने को।
हाथ रखना मगर नब्ज़ पर ज़मीनी हकीकत की।।

क्या-क्या कहें,क्या-क्या लिखें,उनके जलवे दीदार पर। "उस्ताद"बस लेते बलैया उनकी नजाकत,नफासत की।।

नलिनतारकेश @उस्ताद

Friday, 1 September 2023

572: ग़ज़ल: चिंगारी अभी बाकी है

निगाहों में कशिश की चिंगारी अभी बाकी है।
सो दिल में धड़कती आशिकी अभी बाकी है।।

उम्र हो रही है तो वो बस जमाने के लिए है। 
प्यास पर भौंरे सी यूँ रसीली अभी बाकी है।।

किताबें पढ़ के तो देख लीं हैं बहुत हमने यारब।
हसरत मगर दिलों को पढ़ने की अभी बाकी है।।

शराब,साकी,जाम,मयखाने में सभी तो हैं मौजूद।
निगाह उसके दीदार को अखरती अभी बाकी है।।

कुछ कहेंगे "उस्ताद" इसको मृगतृष्णा तुम्हारी।
मगर खोज को कुलांचे तो नयी अभी बाकी हैं।।

नलिनतारकेश @उस्ताद