Monday, 29 April 2019

131-गजल

तुम बिन ये दिन तो गुजरता नहीं है।
उजाला अब आंगन चहकता नहीं है।।
रात हो कि सुबह ये सब जान रहे।
वक्त किसी को यहां पूछता नहीं है।।
खुद ही बना ले जो बन्दा अपनी हजामत।
वक्त के किसी दौर से वो तो डरता नहीं है।।
बढती उमर के साथ जोश वही है उसका।
शौक के आगे वो किसी की सुनता नहीं है।।
पीयें है इतनी कसम से "उस्ताद" जी।
कदम हमारा तो अब बहकता नहीं है।।
नलिन@उस्ताद

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