Thursday 18 April 2019

123-गजल

कहीं ना कहीं तो दिल लगाना  पड़ता है। वरना तो ये और-और बड़ा भटकता है।।
सुबह शाम बेबात रोज उसको ही गाली। कहो ऐसे भी कहीं कोई देश चलता है।। घोटालों के जब तुम रहे हो सदा सरताज।
खरी-खोटी तुम्हें सुनाना तो यार बनता है।।
पलक-पांवड़े उसके हर कदम दुनिया बिछा रही।
क्या गैर हो जो अभिनंदन उसका खटकता है।।
तरक्की का परचम लहराने लगा अब तो गांव-गांव।
रकीब हो क्या जो तुम्हें फिर भी वो अखरता है।।
"उस्ताद"सच तो ये है कि मुल्के-माटी से तुम्हें प्यार नहीं।
तभी तो तुम्हें दरअसल चौकीदार बड़ा खलता है।।

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